मैं हिन्दी हूँ
राजेश शुक्ला ‘छंदक’मैं हिन्दी हूँ। मैं हिन्दी हूँ॥
मैं तुलसी की रामचरितमानस,
मैं झर-झर बूँदों की पावस।
मैं सुर के पदों का बाल केशवम हूँ,
मैं बंकिम चन्द्र का वन्दे मातरम् हूँ।
मैं कबिरा के दोहों की बानी,
मैं ही रहीम को जानी-मानी।
मैं मीराबाई के पद की मिठास,
मैं केशवदास के मन की खटास।
मैं ही रसखान के सवैया हूँ,
मैं ही आल्हा की गवैया हूँ॥
मैं हिन्दी हूँ॥ मैं हिन्दी हूँ॥
मैं भारतेन्दु का श्रेय बनी,
मैं महावीर का ध्येय बनी।
मैं रामचंद्र का हिंदी शब्दसागर,
मैं बिहारी के दोहों की गागर।
मैं प्रताप नारायण की मानस विनोद,
मैं राजवंश का आमोद-प्रमोद।
मैं महादेवी के अमर गीत,
मैं सुभद्रा के मन में छिपी प्रतीत।
मैं ही प्रसाद की कामायनी हूँ,
मैं ही धनपत की कथा कहानी हूँ॥
मैं हिन्दी हूँ॥ मैं हिन्दी हूँ॥
मैं हरिवंशराय की मधुशाला,
मैं सांकृत्यायन मतवाला।
मैं सुमित्रानंदन का प्रकृति प्रेम,
मैं जय प्रकाश की कुशल क्षेम।
मैं नागर की अनूठी कहानी बनी,
मैं जायसी की प्रेम दीवानी बनी।
मैं रमई काका की अवधी बोली,
मैं हाथरसी की अनुपम झोली।
मैं ही दिनकर का बँटवारा हूँ,
मैं ही नागार्जुन की युगधारा हूँ॥
मैं हिन्दी हूँ॥ मैं हिन्दी हूँ॥
मैं धर्मवीर की रंगभूमि बनी,
मैं कुटज की मरुभूमि बनी।
मैं नीरज के अमर गीत,
मैं बेचैन के गीतों में प्रीत।
मैं लालित्य सरिता के छंदों का,
मैं गौरव हूँ मुखड़ा बंदों का।
मैं शर्मा के हास्य का प्यार बनी,
मैं चक्रधर के काव्य की धार बनी।
मैं कवियों, लेखकों की सहेली हूँ,
मैं लगता है अपनों में अकेली हूँ॥
मैं हिन्दी हूँ॥ मैं हिन्दी हूँ॥
मैं विश्व पटल पर मान्य हुई,
मैं जगत गुरु का ज्ञान हुई।
मैं आन, बान और शान बनूँ,
मैं राष्ट्र का गौरव मान बनूँ।
मैं डलझील की फूलों की घाटी,
मैं आज़ाद, भगत की परिपाटी।
अब सबको ये वचन निभाना है,
अब शीर्ष पर मुझे बैठाना है।
मैं भारत माता का मान बनूँ,
मैं जन-जन की पहचान बनूँ॥
मैं हिन्दी हूँ॥ मैं हिन्दी हूँ॥