जन्मभूमि पावन अपनी

01-10-2022

जन्मभूमि पावन अपनी

राजेश शुक्ला ‘छंदक’ (अंक: 214, अक्टूबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

जन्मभूमि पावन अपनी, इसका हम वन्दन करते हैं। 
भारत माता के पुत्र आज, इस माटी से चन्दन करते हैं॥
रवि की प्रथम किरण कुंदन, साँझ सुहाग की लाली है। 
पग धोता रत्नाकर निशिदिन, हिमगिरि करता रखवाली है। 
ऋतुएँ जहाँ बदलती रहतीं, फिर आता है मधुमास यहाँ। 
इस धरती पर आते कामदेव, नटवर नर्तन कर गए जहाँ। 
कारी बदरी को देख मोर, फिर कलरव क्रंदन करते हैं॥
भारत माता के पुत्र आज, इस माटी से चन्दन करते हैं॥
 
वेद, पुराण, ऋचाएँ पावन, अनमोल व्यास की थाती है। 
तोते रटते हैं राम नाम, कोयलिया गीत सुनाती है। 
मानव की क्या बात करें, पाहन भी पूजे जाते हैं। 
भूखों को भोजन हम देते, बलिभाग काग भी पाते हैं। 
गायें भी माता कहलाती, हम उनका पूजन करते हैं॥
भारत माता के पुत्र आज, इस माटी से चन्दन करते हैं॥
 
झर-झर, झर-झर झरते झरने, नदियाँ रसधार बहाती हैं। 
पावस में रिम-झिम बूदें भी, राग मल्हार सुनाती हैं। 
है हरित वर्ण माँ का आँचल, रसयुक्त यहाँ की बोली है। 
त्यौहार अनगिनत होते जहाँ, पूजा की थाली, रोली है। 
महर-महर महके फुलवारी, भौंरें भी गुंजन करते हैं॥
भारत माता के पुत्र आज, इस माटी से चन्दन करते हैं॥
 
कुछ मित्र भूल ये कर बैठे, सहने को समझे लाचारी हैं। 
है रक्त उबलता मेरा भी, पड़ सकता उनको भारी है। 
करते हैं सौ तक माफ़ सुनो, हम कृष्ण की रीति निभाते हैं। 
जग को हम फिर बार-बार, सौहार्द का पाठ पढ़ाते हैं। 
अरि भी जो आये दरवाज़े, उसका अभिनन्दन करते हैं॥
भारत माता के पुत्र आज, इस माटी से चन्दन करते हैं॥

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