लल्ला अल्ला की मरजी
राजेश शुक्ला ‘छंदक’(अवधी कविता)
लल्ला अल्ला की देन हवै,
यह सुनि मति चकराइ गयी।
जोरू तौ बनिगै एक मशीन,
वह पैरा जइस झुराइ गयी।।
मनई कै बहुत कमाई ना,
मुलु साँझै का ठर्ररा ढारि लेइ।
साथइ लावा जो बिरयानी,
ओहू अपने पेटे मा डारि लेइ।
ज्यों अंकवारी लिए जोरू का,
फिरि सारी बत्ती बुझाइ गयी॥ लल्ला अल्ला . . .
कबहूँ मुरगा या बड़े-छोट,
कबहूँ अंड़न का लाइ रहा।
जब चढै़ सुरसुरी मूंड़े पर,
जोरू संग बीन बजाइ रहा।
पहिले ते बेटवा रहइ टेंटे,
अब अगिले कै बारी आइ गयी॥ लल्ला अल्ला . . .
वह पहुँची डफरिन अस्पताल,
अगली उम्मीद देखावइ का।
गोहराय कहिस कोउ खिड़की ते,
नामुइ तौ बोल लिखावइ का।
जन्नत हाथइ मा पकरे परचा,
मुलु आँखिन अँधियारी छाइ गयी॥ लल्ला अल्ला . . .
डाक्टर बोली देखतइ फौरन,
खून कमै तन बहुतइ है।
तुम काहे चाहौ अब बेबी का,
लरिका तुमरे तौ बहुतइ है।
डाक्टर ते बोली वह तुरतै,
मरजी अल्ला की सुझाइ गयी॥ लल्ला अल्ला . . .
डाक्टर खर्ररा लिखि दीन्हिस,
मुल यहिका मतलब कुछ नाहीं।
शेखू अउतइ मदमस्त होइ,
वहिकी हालति का पूँछै नाहीं।
अंधैरु भवा जब कमरा मा,
फिरि तन कै प्यास बुझाइ गयी॥ लल्ला अल्ला . . .
एकु टेंटे पर एकु पेटे भीतर,
पंगति लरिकन कै बहुतै है।
भूरे, छोटू, दूबरि, अट्टन, पट्टन,
सब एकै तसला मा खउतै है।
पांच रुपल्ली दूध के पाकेट का,
आजु बिटेवा रिरिआइ गयी॥ लल्ला अल्ला . . .
जस तस बीते हैं नौ महिना,
अब संउरि कै बारी आयी है।
शेखू अब पीटति हैं कपार,
रुपयन कै लाचारी छायी है।
अब ठांढि मुसीबत बनि पहाडु,
दिनहे मा नखत देखाइ गयी॥ लल्ला अल्ला . . .
आँखी घुसिगंइ अब गड्ढा मा,
तन हरदी अस पिअर भवा।
लरिका अब चूँसै सूखी छाती,
मुश्किल लागति जिअब भवा।
जन्नत तौ बनिगै अब दोजक,
मरजी अब माथे सजाइ गयी॥ लल्ला अल्ला . . .