हिन्दी का मान
शकुंतला अग्रवाल ‘शकुन’
घनाक्षरी
1.
हिन्दी से है हिन्दुस्तान, है जीवित अभिमान,
बढ़ाती है पहचान, हो गुँजायमान।
रस-छंद-अलंकार, हिंदी का करे शृंगार।
करना इससे प्यार, करके सम्मान।
मातृभूमि की जान ये, अपना अरमान ये,
बनी देश की शान ये, होंठों की मुस्कान।
दुनिया में डंका बजे, विश्व पटल पे सजे,
विदेशी भाषा को तजे, माँ का रखे मान।
2.
हिन्दी
हिन्दी-भाषा अनमोल, मीठे-मीठे प्यारे बोल,
मिसरी देते हैं घोल, है मात समान।
तुलसी मीरा औ' सुर, भर के छंदों में नूर,
रच ग्रन्थ-भरपूर, पाया है सम्मान॥
इसका वंदन कर, तू, अभिनंदन कर,
तिलक, चंदन कर, कर सुधा-पान।
राष्ट्रभाषा का हो ताज, ऐसे करने हैं काज,
सब उठा लो आवाज़, बढ़े माँ का मान।
3.
हिन्दी
रस-छंद-अलंकार, शब्द-शब्द रसधार,
हिंदी के ये ही शृंगार, है हमको अभिमान।
है गंगा-सा शब्द-कोष, दिखे न कोई भी दोष,
शहद-सा है उद्घोष, हम सबकी है शान।
तत्सम औ विलोम तो, जैसे अवनी, व्योम तो,
शीतल ऐसे सोम तो, लगे अमृत-समान।
मुहावरों की खान ये, वचन, संज्ञा, ज्ञान ये,
देश की पहचान ये, महकता हिन्दुस्तान।
4.
हिन्दी
एक दिन मान कर, मत तू गुमान कर,
अहम का दान कर, हिन्दी को चुन ले।
पर-भाषा का तू ढोल, क्यों पीट रहा है बोल,
हिन्दी भाषा अनमोल, कुछ तो गुन ले।
सौतेले व्यवहार से, अपनों की ही मार से,
बिछुड़ी परिवार से, पीड़ा तो सुन ले।
ग़ुलामी को छोड़ अब, ज़ंजीरों को तोड़ अब,
माँ से नाता जोड़ अब, सपने बुन ले।