आँखें झरें, झरती रहें

01-03-2024

आँखें झरें, झरती रहें

शकुंतला अग्रवाल ‘शकुन’ (अंक: 248, मार्च प्रथम, 2024 में प्रकाशित)


(मधु मालती छंद पर गीतिका)
 
आँखें झरें, झरती रहें। 
कुछ अनकही, कहती रहें। 
 
चाहे मिले, अपमान भी। 
नारी यहाँ, सहती रहे। 
 
ससुराल में, सबके लिए। 
नित बर्फ़ सी, ग़लती रहे। 
 
जब स्वप्न के, ढहते क़िले। 
निज गेह में, तपती रहे। 
 
लख पाँव में, कंटक चुभे। 
बनके नदी, बहती रहे। 
 
परिवार में, वो प्रेम की। 
रस्सी सदा, कसती रहे। 
 
नारायणी, हैं नारियाँ। 
परपीड़ को, हरती रहें। 

शकुंतला अग्रवाल शकुन 
भीलवाड़ा राजस्थान
मो 9462654500

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