बेबस क्यों हैं नारियाँ

01-03-2024

बेबस क्यों हैं नारियाँ

शकुंतला अग्रवाल ‘शकुन’ (अंक: 248, मार्च प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

बेबस क्यों हैं नारियाँ? रहती क्यों लाचार? 
क़ायम इनकी कोख पर, देखो ये संसार॥
 
ये दुर्गा ये कालिका, करे नमन भगवान। 
इनको मिलती क्यों, जग में दुख की खान? 
जिसके आँचल में समा, जाता है ब्रह्मांड। 
उस के जीवन नित्य ही, होते बर्बर कांड? 
कर निज का अवदान वो, ख़ूब उलीचे प्यार। 
क़ायम इनकी कोख पर, देखो ये संसार। 
 
विपदा आए जब कभी, बन जाती है शैल। 
दुख, पल में जाने लगे, अपनी-अपनी गैल। 
अधरों पर धर मृदु-हँसी, सब हर लेती पीर। 
किसने उसके भर दिया, है नयनों में नीर? 
नित्य-सजाती द्वार पर, सुख की बंदन-वार। 
क़ायम इनकी कोख पर, देखो ये संसार। 
 
दफ़ना कर निज-स्वप्न सब, ख़ूब परोसे-प्रीत। 
मिले घाव उसको सदा, कैसी है ये रीत? 
धधके-ज्वाला बन तभी, उसके मन के गीत। 
समय चले चाहे ‘शकुन’, कितना भी विपरीत। 
विकट-मोड़ कितने मिले, नहीं मानती हार। 
क़ायम इनकी कोख पर, देखो ये संसार। 

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