हे केशव, अब आओ . . .
शक्ति सिंह
लक्ष्य की तरफ़ निगाह हो,
क़दमों में उत्साह हो,
मन में पाने की चाह हो,
हर साँस में गुहार हो।
हे केशव, अब आओ . . .
कितनों के सपनों की राह पर,
चल दिए हम संकटों के मार्ग पर।
देश और समाज के विकास की चाह पर,
कुछ न हमारा, खेलेंगे आज जान पर।
हे केशव, तुम आओ . . .
या तो स्वयं नष्ट हो जाएँगे,
या तो पाप का विनाश कर जाएँगे।
अब न कोई कल्कि अवतार आएँगे,
जो करना है, वो हम ही कर जाएँगे।
हे केशव, शक्ति दो . . .
सुना है, अफ़्रीका में बच्चा पैदा करने की फ़ैक्ट्री है।
बारह से पंद्रह साल की मजबूर लड़कियाँ हैं।
मात्र सुनकर और सोचकर कलेजा धड़कता है,
ज़रा सोचिए, उन पर क्या गुज़रता है।
हे केशव, तुम आओ . . .
जहाँ नारियों का सम्मान होना था,
वहाँ उनकी पशुओं-सी चीत्कार है।
जब एक नारी के लिए महाभारत हुआ,
तो क्यों न अब तक केशव का आगमन हुआ?
हे केशव, अब आओ . . .
बस लक्ष्य यही है, ऐसी कोई शक्ति मिले,
क़दमों को वह तीव्र गति मिले।
जिससे पापियों की आत्मा हिले,
समस्त संसार से उनकी चिता जले।
हे केशव, अब आओ . . .