कहानी: शिक्षा का ब्रह्मास्त्र

01-10-2025

कहानी: शिक्षा का ब्रह्मास्त्र

शक्ति सिंह (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

यदि आप किसी बच्चे को नैतिक मूल्य सिखाना चाहते हैं, तो उसे कहानी सुनाइए। हम सभी को याद है कि बचपन में दादी-दादा या नाना-नानी कितनी आत्मीयता और उत्साह से कहानियाँ सुनाया करते थे। ये कहानियाँ हमारे मासूम मन पर धीरे-धीरे अपनी अमिट छाप छोड़ देती थीं और जीवनभर के लिए नैतिक मूल्यों की नींव रख जाती थीं। कहानी केवल शब्दों का मेल नहीं होती, वह भावनाओं और विचारों का सेतु है, जो मन की गहराइयों तक उतरकर शिक्षा को जीवंत बना देती है। शिक्षा का उद्देश्य केवल सूचनाएँ देना नहीं है, बल्कि भावनाओं, विचारों और मूल्यों को हृदय में उतारना है और इस कार्य में कहानी सबसे प्रभावशाली माध्यम है। 

कहानी की शक्ति का अनुभव हम अपने जीवन में अनेक बार कर चुके हैं। जब कोई अध्यापक बच्चों को केवल यह कहता है कि ‘ईमानदार बनो’, तो हो सकता है कि वे सुन लें और जल्दी ही भूल जाएँ, लेकिन जब वह ईमानदार लकड़हारे की कहानी सुनाता है, तो वही भाव मन पर स्थायी छाप छोड़ जाता है। कहानी में छिपे प्रश्न क्या हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ? बच्चों में जिज्ञासा, कल्पनाशीलता और सोचने की आदत को जन्म देते हैं। यही कारण है कि बचपन में सुनी हुई शेर और चूहे की दोस्ती, कौआ और मटका या ईमानदार लकड़हारे की कहानियाँ आज भी हमारी स्मृति में ताज़ा हैं। कहानी हमें केवल मनोरंजन नहीं देती, बल्कि आत्ममंथन और नैतिक चेतना का संदेश भी देती है। 

आज के डिजिटल और तेज़ रफ़्तार जीवन में भी कहानी की शक्ति कम नहीं हुई, बल्कि और बढ़ गई है। यह शिक्षक और छात्र के बीच ऐसा भावनात्मक पुल बनाती है, जो किसी जटिल विषय को भी सरल और रोचक बना देता है। जब विज्ञान का अध्यापक न्यूटन के सिर पर सेब गिरने की घटना को केवल तथ्य की तरह बताता है, तो बच्चे भूल सकते हैं, लेकिन यदि वह इसे कहानी की तरह सुनाता है कि एक दिन न्यूटन बाग़ में बैठा था और अचानक एक सेब गिरा, जिसने उसके मन में यह जिज्ञासा पैदा की कि सेब हमेशा नीचे ही क्यों गिरता है, तो यही घटना बच्चों के मन में सोचने और खोज करने की आदत के रूप में बस जाती है। इसी प्रकार यदि इतिहास केवल तिथियों और घटनाओं तक सीमित रहे, तो बच्चों को उबाऊ लगेगा, परन्तु जब झाँसी की रानी, भगत सिंह या महात्मा गाँधी की प्रेरक कहानियों के माध्यम से पढ़ाया जाता है, तो वही पाठ जीवंत अनुभव बन जाता है। 

कहानी की यही विशेषता है कि यह सहज, भावनात्मक और कल्पनाशील होती है। बच्चे जटिल सिद्धांतों की अपेक्षा रोचक प्रसंगों और पात्रों से अधिक जुड़ते हैं। वे कहानी के पात्रों की जगह स्वयं को रखकर सोचते हैं और इससे उनके मन में सहानुभूति, करुणा, सहयोग, परिश्रम, दया और अनुशासन जैसे नैतिक मूल्य सहज रूप से उतर जाते हैं। यही कारण है कि पंचतंत्र और हितोपदेश की कथाएँ व्यवहारिक ज्ञान और नैतिकता के अद्भुत पाठ सिखाती हैं, रामायण और महाभारत की कथाएँ धर्म, कर्त्तव्य और सामाजिक मूल्यों की शिक्षा देती हैं, जबकि अकबर-बीरबल और तेनालीराम की कहानियाँ चतुराई और निर्णय क्षमता का विकास करती हैं। सुभाषचंद्र बोस, अब्दुल कलाम और मदर टेरेसा जैसे व्यक्तित्वों की कहानियाँ जीवन में संघर्ष, सेवा और प्रेरणा का संचार करती हैं।

आज की प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया में कहानी को नए रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। डिजिटल माध्यम ने कहानी की शक्ति को और भी प्रभावशाली बना दिया है। यूट्यूब, स्टोरीवीवर, प्रथम बुक्स, ऑडियो स्टोरीज़ और एनीमेशन जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स ने बच्चों तक कहानियों को जीवंत रूप में पहुँचाना आसान कर दिया है। अब यह केवल दादी की गोद तक सीमित नहीं, बल्कि मोबाइल और इंटरनेट के माध्यम से हर घर तक पहुँच चुकी है। फिर भी कहानी की असली प्रभावशीलता तब होती है, जब शिक्षक उसे भावपूर्ण अंदाज़ में सुनाते हैं। स्वर के उतार-चढ़ाव, चेहरे के हावभाव और भावनाओं से भरी अभिव्यक्ति के साथ सुनाई गई कहानी विद्यार्थियों के मन पर गहरी छाप छोड़ती है। जब शिक्षक कहानी को बच्चों से जोड़कर यह पूछते हैं कि अगर तुम तताँरा-वामीरो की जगह होते, तो क्या करते? तो बच्चा सोचने, विश्लेषण करने और आत्ममंथन करने लगता है। यही शिक्षा का सच्चा उद्देश्य है। 

हम सभी को सोचना चाहिए कि आज की पीढ़ी में नैतिक मूल्यों की कमी क्यों देखी जा रही है। कहीं इसका कारण यह तो नहीं कि हमने बच्चों को कहानियों के माध्यम से जीवन का पाठ सिखाना छोड़ दिया है? व्यस्त जीवनशैली और आर्थिक चुनौतियों ने हमें इतना व्यस्त कर दिया है कि हमारे पास बच्चों को कहानी सुनाने का समय ही नहीं बचा लेकिन यह याद रखना चाहिए कि शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला है और इस कला को सिखाने में कहानी से बेहतर कोई माध्यम नहीं। कहानी वह ब्रह्मास्त्र है, जो जटिल विचारों को सरल बनाती है, भावनाओं को जोड़ती है और बच्चों को न केवल बुद्धिमान बल्कि संवेदनशील भी बनाती है। यदि माता-पिता और शिक्षक कहानी को अपने जीवन और शिक्षण का हिस्सा बना लें, तो शिक्षा केवल परीक्षा पास करने का साधन नहीं रहेगी बल्कि जीवनभर ऊर्जा देने वाली प्रेरणा बन जाएगी। 

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