हरेन्द्र श्रीवास्तव – हाइकु – 001
हरेन्द्र श्रीवास्तवभीषण गर्मी
जल रहे हैं वन
रोते हिरन।
तपती धरा
सूख गये हैं पेड़
खेत व मेड़।
व्याकुल मैना
पुकारते जंगल
आओ रे रैना।
बुझा दो प्यास
हरे भरे हों खेत
बरसों मेघ।
जेठ की गर्मी
अब सही ना जाये
रैना तू आये।