बड़ा बेबस और मजबूर हूँ मैं
हरेन्द्र श्रीवास्तव
कितने दुःख दर्द झेल रहा हूँ जीवन में
हालातों से लाचार बेबस मजबूर हूँ मैं!
ख़ामोश हैं लब कैसे दर्द सुनाऊँ अपना
थका हारा हुआ टूट-टूट कर चूर हूँ मैं!
ज़िन्दगी किस मोड़ पर ले आयी मुझको
पेड़ की डाली से बिखरा हुआ फूल हूँ मैं!
चाह बहुत कुछ करने की है दिल में मेरे
पर बहुत अकेला बड़ा कमज़ोर हूँ मैं!
ग़लतफ़हमियाँ इतनी फैलीं मुझको लेकर
पास होते हुए भी अपनों से बहुत दूर हूँ मैं!
ना किसी से गिला शिकवा ना ही शिकायत
मेरा भगवान जानता है कि बेक़ुसूर हूँ मैं!