देवी

मनोज शर्मा (अंक: 200, मार्च प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

एक तो लगातार बरसात और फिर ऊपर से बदबूदार सीलन। कुछ घंटे ही बूँदें गिरी नहीं कि हर ओर कीचड़। जिधर से निकलो पाँव मिट्टी में सन जाएँ। धन्ना ने पाँव उठाते हुए सामने से आती धुँधली आकृति को देखा। कुछ पहचानते हुए उसने मुँह बिचकाते हुए स्वयं से कुछ कहने लगा। ये लो फिर आ गयी ये साली . . . सामने? इस विधवा का भी बुरा हाल है जब देखो बाहर घूमती रहती है अभी किसी के साथ गुलछर्रे उड़ाकर आ रही होगी। बरसात में भी इससे घर में बैठा ही नहीं जाता। मालती जैसे ही उसके क़रीब से गुज़री धन्ना ने आँखें तरेरते हुए उसे देखा। ऐसे लोगों की काली छाया भी किसी पर गिर जाए तो वो भी इस जैसा हो जाए। 

मालती के पति श्याम ने कभी धन्ना से कुछ क़र्ज़ा लिया था। श्याम की बीमारी में सारी जमापूँजी ख़र्च हो गयी। वो मृत्यु का ग्रास बन गया। श्याम का लिया क़र्ज़ा मालती पर आ गया। वो ख़ूब हाड़ तोड़ मेहनत करती पर क़र्ज़े का पहाड़ जस का तस दिखाई देता। क़र्ज़ वापिस न मिलने से धन्ना के मुँह पर मालती के लिए हमेशा कोई ना कोई उलटी बात रहती। धन्ना की नज़र श्याम के छोटे से घर पर थी। आरम्भ में दो-तीन बार इस मार्फ़त बात की पर कभी भी बात नहीं बन सकी ना उसके जीते जी और ना उसके मरने के बाद ही। घर या बकाया क़र्ज़ ना मिल सकने के कारण उसका पारा हमेशा गर्म रहता। वो हमेशा से मालती को देखते ही भला–बुरा कहता। कभी सामने से तो कभी पीछे से। यहाँ तक कि लोगों में उसके लिए झूठी बातें फैलाता ताकि वो ख़ुद ही अपने परिवार को लेकर यहाँ से चली जाए। मालती ने इसे अपनी नियति माना और कभी भी धन्ना का या उसकी निंदा का विरोध नहीं किया। वो क़र्ज़दार थी वो अपने परिवार को पालने और क़र्ज़ा लौटाने के लिए हमेशा कोई ना कोई मजदूरी या छोटा-मोटा काम खोजती ताकि इस क़र्ज़ की गिरफ़्त से जल्द से जल्द मुक्त हो सके। 

धन्ना ऊँचा लंबा किसी दैत्य की भाँति अपनी मूँछों पर हाथ फेरता रहता था। वो जितना कुरूप था उसकी बेटी रूपा उतनी ही सुन्दर थी बिलकुल चाँद की-सी भाँति। वो जब भी मुस्कुराती उसके कपोलों में हल्का गड्डा उभर आता था। वो पास ही के शहर में एक कॉलेज में पढ़ती थी। एक रोज़ उसे आने में देर हो गयी। रूपा के देर तक भी ना आने पर धन्ना की आँखें ग़ुस्से से भर गयीं। उसने हर जगह रूपा को खोजा पर उसकी कोई भी ख़बर नहीं मिली। सारे गाँव में ये ख़बर आग की तरह फैल गयी। धन्ना पाँव पटकता इधर से उधर अपनी बेटी को तलाशता रहा पर देर शाम तक भी उसका कुछ पता ना चला। 

पीली धूप अब हलके अँधेरे में बदलने लगी। शाम को उसने अपनी बेटी को मालती के साथ कहीं से आते हुए देखा। धन्ना ग़ुस्से से आग बबूला हो गया। धन्ना ही नहीं उसका सारा परिवार और उसके सहयोगी मालती को मारने के लिए भागे। मैं तो जानता ही था मेरी बेटी के पीछे इस कलमुँही का ही हाथ होगा। धन्ना मूँछों पर हाथ फेरता क्रोध से उसे देखता रहा। उसने रूपा का हाथ पकड़ा और उससे पूछने लगा, “बता बेटी? बता भी? ये कहाँ लेकर गयी थी तुझे? क्यों नहीं बोलती बेटी डरो नहीं?” रूपा ने सिर उठाकर पिता की ओर देखा। 

“मालती तुम चुप क्यों हो?” धन्ना मालती की ओर दौड़ा, “आज तेरे को नहीं छोड़ूँगा।” 

मालती अपराधी की भाँति चुपचाप सिर झुकाकर वहीं जड़वत खड़ी रही। रात बढ़ने लगी थी और आसमां में तारे चमकने लगे थे। पुलिस को बुलाने के लिए आवाज़ें उठने लगी। धन्ना की बेटी अभी तक चुपचाप खड़ी सब कुछ सुने जा रही थी पर पुलिस का नाम जैसे ही उसने सुना वो चिल्लाने लगी, “हाँ बुला लीजिए पुलिस मैं सब कुछ सच सच बता दूँगी।” 

सारी नज़रें रूपा के चेहरे को देखने लगीं। 

“जब आपको किसी बात का पता ही नहीं तो बिना कुछ भी जाने मालती काकी को इतना बोलते जा रहे हो। आपको पता भी है आज मालती काकी ना होती तो मैं कहीं की ना रहती।”

आसपास खड़े लोग आँख फाड़े उत्सुकता से सबकुछ सुन रहे थे। धन्ना ने थूक निगलते हुए इधर-उधर देखा। 

“आज दोपहर बाद मेरे कॉलेज का एक लड़का जो कई दिनों से मेरे पीछे पड़ा था, उसने मेरे साथ ग़लत काम करने की नियत से मुझे कुछ पिलाया। उसके साथ कुछ और दोस्त भी थे। वो लोग मुझे गाड़ी में ले जाना चाहते थे। मालती काकी कई दिनों से कॉलेज में माली की नौकरी के लिए चक्कर लगा रही हैं। उन्होंने जैसे ही मुझे नशे की हालत में देखा—वो समझ गयीं कि मेरे कॉलेज मित्रों की नियत ठीक नहीं है। उन्होंने उस रईस लड़के को ख़ूब सुनाया और मुझे बचाने के लिए काकी उस लड़के और उसके साथियों से ख़ूब भिड़ीं। उन लड़कों ने मुझे ज़बरदस्ती गाड़ी में बिठा लिया था पर काकी ने अपनी जान की बिलकुल भी परवाह नहीं की और मुझे उन कमीनों से बचाया। मालती काकी कोई पवित्र आत्मा है। इस देवी ने अपने परिवार की चिंता किये बिना भी मुझे उन लोगों से बचाया।” 

मालती सिर झुकाए ज़मीन को ताकती रही उसकी देह पर फटी हुई साड़ी लिपटी थी। वो इतना जानती थी कि वो कितना ही सच कहे पर कोई भी उसकी बात पर यक़ीन नहीं करेगा। 

धन्ना ने अपनी बेटी की सारी बातें सुनीं। वो मालती के पाँव में गिर गया और रोते हुए कहा, “बहिन तुम औरत नहीं देवी हो। तुमने मेरे जैसे नीच आदमी के लिए, जिसने हमेशा तुम्हेंं भला–बुरा कहा और तुम लोगों का बुरा चाहा; उसके परिवार के लिए अपनी जान की बाज़ी लगा दी। रूपा को अपनी बेटी समझा। मैं बहुत बुरा आदमी हूँ मालती बहिन मुझे माफ़ कर देना। मैंने तुम्हेंं बहुत तकलीफ़ दी है अगर मुझे अपना भाई मानती हो तो सारे गिले-शिकवे आज भुला दो।”

आसपास के लोगों ने भी मालती के इस नेक काम की ख़ूब सराहना की। 

मालती ने रोते हुए कहा, “धन्ना भैया, मैंने कभी भी आपकी किसी बात का बुरा नहीं माना। मैं ग़रीब हूँ पर इतनी बुरी नहीं कि मेरी आँखों के सामने कोई मेरे भाई की बेटी के साथ बुरा बर्ताव करे। मैंने हमेशा आपको अपने भाई की तरह समझा है।”

धन्ना ने आँखें पोंछते हुए कहा, “आज से तुम मेरी बहिन हो। अब से तुम्हारे ऊपर कोई लेन-देन नहीं रहा।”

रूपा और उसकी माँ ने भीगी आँखों से मालती को गले से लगा लिया। 

आसमान में उजला चाँद निकल आया। मालती की नम आँखें रात के चाँद को देख रही थीं। आसपास के लोग धीरे-धीरे अपने घरों की ओर लौटने लगे। धन्ना ने मालती के सामने सारे क़र्ज़ के काग़ज़ फाड़ दिए। 

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