दबाव
भावना सक्सैनाजय जवान, जय किसान!
किसान आंदोलन ज़िंदाबाद
काला कानून वापिस लो!
नारे लगाते किसान भाइयों के बीच मैं पत्रकार के रूप में पहुँच गया था।
"कौन सा कानून वापिस कराना चाहते हैं आप?"
"वही जो सरकार ने बनाया है।"
"क्या लिखा है उसमें?"
"वो हमारे ख़िलाफ़ है?"
"अच्छा, पढ़ा आपने?"
"हमें बड़े भैया जी ने बताया।"
"आपने पढ़ा क्या?"
"हम तो पढ़ ही नहीं पाते। हमारा सारा हिसाब भैया जी ही रखते हैं। हमारे बाप के समय मे उनके बाऊजी रखते थे।"
"एक बार चौपाल पर जाकर सुन लेते तो . . ."
*****
"क्यों बे रामपाल कहाँ से आ रहा है?"
"भैया जी, वो चौपाल पर गए थे।"
"क्या समझ कर आया?"
"भैया जी ये कानून इतना ग़लत तो नहीं है, है तो हमारे फ़ायदे की बात इसमें।"
"बहुत पढ़कर आया है।"
"भैया एक बार आप ई का समझ के देखो, आपको गलत नहीं लगेगा।"
*****
टीवी इंटरव्यू में नेताजी कह रहे थे, ये आंदोलन अब आहुति की माँग करता है। हम आहुति देने से पीछे नहीं हटेंगे।
अगली सुबह रामपाल पेड़ पर लटका मिला था।
आंदोलन को आहुति मिल गयी थी। टीवी पर बहस गर्म थी . . . हमारे किसान भाई अपनी जान दे रहे हैं और सरकार टस से मस नहीं हो रही।
अब, सरकार दबाव में थी।