बीच में होना

01-12-2024

बीच में होना

भावना सक्सैना  (अंक: 266, दिसंबर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

चढ़ते चढ़ते ठिठक जाती हूँ सीढ़ियों पर
बीच-बिलकुल बीच
जहाँ से नज़र आते हैं 
दोनों ही, तल और शीर्ष। 
 
बीच में कहीं 
एक सुकून का कोना है 
बीच में होना जुनून का न होना है 
बीच में होना जीवन का बचे रहना है 
वो जो नहीं रहता अपना 
शिरोबिंदु पर। 
 
सोचती हूँ 
इतना भी ज़रूरी नहीं 
शिखर पर पहुँचना
त्यागना पड़ता है बहुत कुछ 
उस बिंदु के लिए 
 
कि स्थायित्व ऊँचाई में नहीं 
समभाव में ही तो है 
न ऊपर, न नीचे 
सुकून की मंज़िल में 
कहीं बीच में। 

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