एक यही भूल
ललित मोहन जोशी
ख़ुद में हम तुझको ही पाने लगे थे
ताउम्र हम यही भूल करने लगे थे
मलाल क्या करें अपने मुक़द्दर का
बस हम सब का दिल रखने लगे थे
होना क्या बस रोना और रोना था
तुझको मेरे आँसू भी पानी से लगे थे
तेरी हँसी के ख़ातिर ख़ुद को बदला
बस हम एक यही भूल करने लगे थे
तेरा ग़लत होकर भी ख़ुद को सही बताना
और हम सही होकर भी बुरे लगे थे
फिर कुछ यूँ हुआ ‘ललित’ अँधेरे से
ख़ुद को हम रोशनी में लाने लगे थे