अहसास!
अशोक परुथी 'मतवाला'मुझे
उनकी यह बात
बहुत अखरती है,
मुझे...
समय से पहले
बूढ़ा करती हैं
मेरी ...
आत्मा को,
झँझोड़ती है
जब...
कुछ हम-उम्र महिलायें,
दो-तीन बच्चो वाली अम्मायें
मुझे...
अंकल-अंकल करती हैं!
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- ललित निबन्ध
- स्मृति लेख
- लघुकथा
- कहानी
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
-
- अली बाबा और चालीस चोर
- आज मैं शर्मिंदा हूँ?
- काश, मैं भी एक आम आदमी होता
- जायें तो जायें कहाँ?
- टिप्पणी पर टिप्पणी!
- डंडे का करिश्मा
- तुम्हारी याद में रो-रोकर पायजामा धो दिया
- दुहाई है दुहाई
- बादाम खाने से अक्ल नहीं आती
- भक्त की फ़रियाद
- भगवान की सबसे बड़ी गल्ती!
- रब्ब ने मिलाइयाँ जोड़ियाँ...!
- राम नाम सत्य है।
- रेडियो वाली से मेरी इक गुफ़्तगू
- ज़हर किसे चढ़े?
- हास्य-व्यंग्य कविता
- पुस्तक समीक्षा
- सांस्कृतिक कथा
- विडियो
-
- ऑडियो
-