रेखाएँ - पंद्रह क्षणिकाएँ

01-01-2015

रेखाएँ - पंद्रह क्षणिकाएँ

डॉ. रमा द्विवेदी

1.
रेखाओं की भी,
होती है एक इबारत,
पढ़ सको तो पढ़ लेना।
2.
रेखाएँ!
सोच-समझ कर खींचना
ये अभिशाप भी बन सकती हैं
और
वरदान भी।
3.
हस्त रेखाएँ,
बताती हैं भाग्य, लेकिन
क्या कोई सच में,
इन्हें पढ़ पाया है।
4.
भाग्य रेखाएँ
यदि कोई पढ़ पाता
तब हर किसी का भाग्य,
सौभाग्य होता।
5.
रेखाओं का समीकरण,
अक्षर की व्यतुपत्ति,
शब्द निर्माण,
और शब्द रचते हैं,
गीता, पुराण, महाकाव्य
और महाभारत।
6.
एक लक्ष्मण रेखा,
क्या लाँघी?
सीता हरण हो गया,
भयंकर राम-रावण युद्ध,
एक युग का अन्त।

7.
रेखाओं का जाल,
उलझती जीवन शैली
का मापदंड।
8.
समानान्तर रेखाएँ
किसी को काटती नहीं,
इसलिए जीवन का बीजगणित,
अर्थवान हो उठता है।
9.
मेहनत!
भाग्य रेखाओं को,
नया मोड़ दे देती है।
10.
जीवन का समीकरण,
सिर्फ
भाग्य रेखाओं से
नहीं बनता।
11.
रेखाएँ!
सीधी, आड़ी, तिरछी,
खींच कर देखिए,
कभी-कभी,
कुछ महत्वपूर्ण बन जाता है।
12.
रेखाओं को यूँ ही
व्यर्थ मत करो,
क्योंकि यही रेखाएँ होती हैं
सभ्य संस्कृति और-
सभ्य समाज की धरोहर।
13.
संसार भर की
भाषाओं एवं लिपियों का विकास
रेखाओं के संतुलन पर टिका है।
14.
रेखाएँ,
नदी के दो किनारे जैसी हों,
और रिश्तों के बीच बहती रहे,
मिठास, स्नेह और आत्मीयता।
15.
रेखाओं की संवेदना को,
कठोर न बनने दें,
नहीं तो,
मनुष्यता नष्ट हो जाएगी।

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