मधुरिम मधुरिम हो लें
आचार्य संदीप कुमार त्यागी ’दीप’परिणय के धागे में प्रियतम प्रणय-प्रसून पिरो लें।
मधु-मानस-मण्डप में अब हम मधुरिम-मधुरिम लें॥
सस्वर मंत्रगान सा करते बन पर्जन्य-पुरोहित,
अभिमंत्रित अमृत वर्षण कर करते ताप तिरोहित।
मधुर-मिलन के परम वचन हम सप्तपदी पर बोलें॥
देखो हरित् धरित्री पर अति हर्षित नील गगन है ,
क्षितिज पार आलिंगन करता कैसा मुदित मगन है।
आओ हम भी बीज आज अद्वैत प्रेम का बोलें॥
देख रही ये अपलक सुभगा ले हिय प्रिय उन्माद
मदिर मदिर ये अधर चाहते केवल प्रेम-प्रसाद।
हीरक-हार हृदय सुन्दरतम हर अवगुण्ठन खोलें॥
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