जवाँ भिखारिन-सी

31-05-2008

भूखी थी दुत्कार खा गई, और अनचाहा प्यार पा गई।
जवाँ भिखारिन बनी ज़िन्दगी क़दम क़दम पर मार खा गई॥
 
पेट पालने के चक्कर में पलने लगा पेट में कोई,
पल पल पीती घूँट ज़हर के भूखी प्यासी खोई खोई।
रोई चीख़ी सन्नाटों में गहरी-सी चीत्कार छा गई॥
 
जितने जिस्म बिके दुनिया में बदमाशों के बाज़ारों में
हाथों हाथ ख़रीदे रौंदे कुचले सब इज़्ज़तदारों ने ।
आज शरीफ़ों की महफ़िल में कहकर गश लाचार खा गई॥
 
नहीं भरोसा कुछ साँसों का, अरमानों की इन लाशों का,
बोझ नहीं अब उठता हाय! प्यासी से ख़ाली गलासों का ।
पानी फिर भी झरे आँख से लगता फिर फटकार खा गई॥

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