इंसान घूम रहे हैं शहर में

15-02-2020

इंसान घूम रहे हैं शहर में

फाल्गुनी रॉय (अंक: 150, फरवरी द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

ज़रा-ज़रा सी बात पर
हिंसक पशुओं सा 
बर्बर आचरण करता, 
कितना करुणाहीन और आक्रामक 
हो गया है इंसान।


न धैर्य, न दया, न सयंम 
देख रहा हूँ 
कितना संवेदनाशून्य
हो गया है धीरे-धीरे इंसान।


जाने किस ओर से आती हुईं गोली
सीने को छलनी कर जाय?
घात में बैठा कोई खंजर
कब आकर धँस जाये जिगर में 
पता नहीं।


जाने किधर
हवस भरी निगाहें
घूम रहे हैं ताक में,
फ़िराक़ में
कहना कठिन है।


भय नहीं लगता 
किसी खूँख़ार जानवर का अब
भय तो लगता है कि
'इंसान' घूम रहे हैं शहर में 

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