तुमसे भागकर, राधा, जिस दिन से शहर आया हूँ, धो रहा हूँ मटमैली कमीज़ को रोज़ - एलकोहल से, पैट्रोल से।
गाँव की सौंधी गंध तो कभी की जाती रही लेकिन गोबर सनी हथेली की इस छाप का क्या करूँ जिसका रंग पीठ पर दिन-दिन गहराता जाता है!