ज़माना क्या-क्या तेवर माँगता है
दौलतराम प्रजापतिज़माना क्या-क्या तेवर माँगता है
कहीं उल्फ़त कहीं सर माँगता है
बड़ा मासूम है मन का परिंदा
उड़ानों के लिए पर माँगता है
अदद है जुस्तजू भी एक क़तरा
कहाँ कोई समंदर माँगता है
मस्लहत ज़िन्दगी सर कर रही है
ज़माना और बेहतर माँगता है
उम्र सारी गुज़ारी दर-ब-दर में
मुसाफ़िर कब कोई घर माँगता है