खाल खींचती सत्ता
दौलतराम प्रजापतिखाल खींचती सत्ता।
ताक लगाए
हम पर बैठा
पथ में पत्ता-पत्ता॥
सूखी रोटी
बासी चावल।
बेगारी के मिले
हमें फल॥
कभी न देखे
नए नवेले
तन पर कपड़ा लत्ता॥
अधिकारों की
सतत लड़ाई।
पटी न लेकिन
गहरी खाई।
जब भी माँगें
हम अपना हक़
खाल खींचती सत्ता॥
मेहनतकश
दिन-रात जूझते
कोठी बँगले
ख़ून चूसते
मेज़ें पीट
बढ़ा लेते जो
अपना वेतन भत्ता॥