इनके कांड
दौलतराम प्रजापतिजागो छाती
रौंद रहे हैं
सत्ताधारी साँड़।
चीन्ह चीन्ह कर
बाँट रहे हैं
माँगा जो हक़
डाँट रहे हैं॥
चावल सारे
ख़ुद खा जाते
हमें पिलाते माँड़॥
मिली विरासत
बेच रहे हैं
जन की चमड़ी
खेंच रहे हैं॥
जमे नाग ये
सुविधाओं पर
जनता झोंके भाड़॥
लाठी भाँजें
दंड पेलते।
क़ानूनों से
रोज़ खेलते
बंद फ़ाइलों में
हो जाते
फिर भी इनके कांड॥