तुम करते सौग़ातें
दौलतराम प्रजापतिबाँट रहे हो
जनता का धन
लम्बी-लम्बी
करके बातें॥
किसने माँगी
हैं ख़ैरातें॥
गिनवाते हो
रोज़ हज़ारों
अपने ही अहसान।
सोचो तुम्हें
बनाया किसने
पत्थर से भगवान॥
भेदभाव का
विष बोते हो
शोर मचाकर
जाते-जाते॥
हमने भरे
ख़जाने ख़ाली
करके ख़ून पसीना।
किसे चाहिए
अहसानों का
बिच्छू-साँप दफ़ीना॥
श्रम संसाधन
लहू हमारा
तुम करते सौग़ातें॥