किसने कहा है आसमाँ, सारा उठा के चल
दौलतराम प्रजापतिकिसने कहा है आसमाँ, सारा उठा के चल
कांधे पे एक धूप का, टुकड़ा उठा के चल
हलकान बस्तियों की है, बादल तलाश में
इस झूठ से, फ़रेब से, पर्दा उठा के चल
रस्ते में राहबर भी, राहज़न भी मिलेंगे
मंज़िल पे ऐतबार का ख़तरा उठा के चल
किसको नसीब होती है, माकूल ज़िन्दगी
ख़ुशियों का एक वक़्त से, लम्हा उठा के चल
लायेंगी रंग ख़ून से सींची ये क्यारियाँ
थोड़ा सा इंतज़ार का वक्फ़ा उठा के चल
नफ़रत, फ़साद, ज़ुल्म के, अन्याय के ख़िलाफ़
‘दौलत’ तू इंक़िलाब का झंडा उठा के चल