उम्मीद

निर्मला कुमारी (अंक: 260, सितम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

उम्मीद थी तू नज़र आएगी 
मुझे लगा तू आई मगर 
अफ़सोस, 
माना कि मैं नाकाम रहा 
तेरी आहट से 
कम से कम तूने इशारा 
तो किया होता। 
 
एक ख़्वाब था कि 
अपनी मुस्कान से 
मेरे घावों को मरहम देगी 
अपने अंदाज़ से 
दर्दे दिल को सुकून देगी 
तू महक बिखेर के 
चली गई 
कम से कम मुझसे 
ख़ुश्बू को तो न 
जुदा किया होता। 
 
सोच बचकानी थी कि 
अपनी आँखों के किनारे 
से मुझे देखे, 
मैंने कोशिश की तो 
सामने पर्दा था 
माना कि पर्दे को 
हवा न हिला सकी
पर्दे का क्या क़ुसूर था 
चाहत होती ग़र तुझे 
तूने पर्दे को खिसका 
तो दिया होता। 
 
मन से जिसे चाहा वो 
सब दिली ख़्याल थे, 
नाकामी न मिलती 
दिमाग़ जो लगाया 
होता। 

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