अर्क्य अर्घ्य
निर्मला कुमारीअरुणाचल के जंगल के
मध्य सतरंगी घोड़े के रथ
पर सारथी अरुण का सूरज को
सवारी करते देखना, अच्छा लगता है।
पौ फटते ही रक्तिम किरणों का
शीतल वायु और डोलते पत्तों के
मध्य छटा बिखेरना, अच्छा लगता है।
झरोखों से आते हैं आदित्य जीवन
में नई ऊर्जा लेकर उनका
जीवन को, जीवन्त बनाना, अच्छा लगता है।
रवि के आगमन पर शशि का
ओझल होना और पक्षियों का
मधुर कलरव का श्रवण,
अच्छा लगता है।
सोलह कलाएँ न जानता भानु
उसे कला दिखाता बादल
ढक लेता उसको जब
तब किनारों से, उसका झाँकना
अच्छा लगता है।
नानी का सवेरे उठ मार्तण्ड को
जल चढ़ाना, उस जल की धार
के पार किरणों का पड़ना और
शशिमुख का आभास कराना
अच्छा लगता है।
नानी के मुख से उच्चारित
गायत्री मंत्र के उच्चारण से
तेजस्वी मुख की आभा, देखना
अच्छा लगता है।