प्रणय का विरह

15-08-2023

प्रणय का विरह

निर्मला कुमारी (अंक: 235, अगस्त द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

चाह थी गर राधा न बन 
पाऊँ 
मीरा बन हृदय में, बसाऊँ 
तुमको 
मैं मीरा तो बन न सकी 
तुम कृष्ण ग़ैरों के 
बने रहे।
 
चाह थी राधा बन 
तुमसे विलग न रह 
पाऊँ मैं, 
मैं राधा तो न बन सकी, 
तुम कृष्ण ग़ैरों के 
बने रहे।
 
चाह थी सखियों में छिप 
निहारूँ छवि तुम्हारी 
मैं सखी तो न बन पाई 
तुम कृष्ण ग़ैरों के 
बने रहे। 
 
चाह थी अर्जुन बन 
उपदेश तुम्हारा सुन पाऊँ, 
मैं अर्जुन तो न बन 
पाई, 
तुम कृष्ण ग़ैरों के 
बने रहे।
 
चाह थी कालिया बन 
चरणों का स्पर्श करूँ 
मैं कालिया तो न बन 
पाई, 
तुम कृष्ण ग़ैरों के 
बने रहे।

मैं अष्टसखी में बनी रही 
तुम रुक्मिणी के परिणय में 
बँध गए, 
मैं राधा ही बनी रह 
गई, 
तुम कृष्ण ग़ैरों के ही रहे।

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