रोके तो कोई 

15-11-2022

रोके तो कोई 

निर्मला कुमारी (अंक: 217, नवम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मेरा दिल चाहता है कि 
मैं दुनिया से नाता तोड़ 
कहीं भी कभी भी इधर जाऊँ 
या उधर जाऊँ ख़ूब अपने मन 
की मस्ती करूँ, 
तभी मन से आवाज़ आती है, 
मेरी राह रोके तो कोई। 
 
दिल चाहता है कि मैं न पढ़ूँ 
न लिखूँ जहाँ चाहूँ वहाँ खेलूँ 
कूदूँ न मुझे कोई देखे 
न मुझे कोई रोके न टोके फिर
मन की आवाज़ आती है
कि नसीहत तो दे कोई। 
 
दिल चाहता है कि मैं जहाँ चाहूँ 
बैठूँ उठूँ हर किसी से बात करूँ
इठलाऊँ जब चाहूँ सोऊँ जब
चाहे जागूँ कौन देखता है? 
फिर मन से आवाज़ आती है
कि मुझे यथार्थ बताये तो कोई। 
 
दिल चाहता है कि ख़ूब नाचूँ ख़ूब गाऊँ 
जाऊँ थियेटर ख़ूब अभिनय करूँ
दिल को बहलाऊँ अपनों से हटकर 
सारे काम करूँ, 
फिर मन से आवाज़ उठती है, 
कि सही सुर-ताल सिखाए तो कोई। 
 
जन्म लेना और मन के चमन को 
अपनी इच्छा रूपी जल से सींचकर 
सँवारना हो नहीं सकता दिल के 
वश में रह कर अकेले जी नहीं सकते, 
पुनः अन्तरात्मा की आवाज़ आती है
असल ज़िन्दगी से रुबरू कराए तो कोई। 
 
आती है उच्छृंखलता वातावरण से 
न कि अन्तरात्मा से, 
वो तो पूरे जीवन मार्गदर्शक है आपकी। 

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