तुम्हारी आँखों में

20-03-2014

तुम्हारी आँखों में

डॉ. रेणुका शर्मा

देखा है मैंने तुम्हारी आँखों में, 
जिज्ञासाओं का अनवरत बहता सैलाब
थम सा क्यों गया है अब? 
वह बहता, छलकता सा समुद्र। 
विचारों की सीलन को
खुली धूप और बयार में सुखा दो ज़रा
कस लो मन के तारों की झंकार को
मधुर संगीत के लिए, 
नूतन आरोह-अवरोह की लय के साथ। 
देखा है मैंने तुम्हारी आँखों में, 
जिज्ञासाओं का अनवरत बहता सैलाब
थम सा क्यों गया है अब? 
 
कहीं दूर बियाबान में भी
बिजली कौंधती है जब, 
प्रकाशित हो जाता, तम भी पल भर के लिए। 
उसी एक पल में ढूँढ़ लेते, 
जीव सारे अपना बसेरा। 
देखा है मैंने तुम्हारी आँखों में, 
जिज्ञासाओं का अनवरत बहता सैलाब
थम सा क्यों गया है अब? 
 
मन के कोने में भी कभी-कभी
लग जाती है जंग, 
कर लो पॉलिश, आशाओं के तेल से
चमका लो मन के कोने-कोने को। 
आँखों में यह चमक, 
कौंध जाये एक बार, क्षणिक ही सही
देखा है मैंने तुम्हारी आँखों में, 
जिज्ञासाओं का अनवरत बहता सैलाब
थम सा क्यों गया है अब? 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें