तुम्हारी आँखें

01-02-2024

तुम्हारी आँखें

आदित्य तोमर ’ए डी’ (अंक: 246, फरवरी प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

गर्मियों में छाँव को
शरद में धूप को
बसंत में बहार को
सावन में बारिश को 
तकती ये आँखें
अभी तक नहीं जान पाईं
इन्हें क्या चाहिए
नहीं समझ पाईं ये कि
चाहती हैं सिर्फ़
नीले अम्बर को देखना या
हरे भरे खेत
किसी नदिया का बहना या 
पूनम की रात
बाग़, बाग़ीचे, गुलाब या 
गगनचुंबी पहाड़
नहीं जान पाईं ये स्थिर होना 
इनके इस आवारा सफ़र में मिली तुम
शांत, सौम्य और सरल सी
दुनिया भर की चकाचौंध के बाद 
ये ठहरी तुम्हारी साधारणता पर 
इनको मिला ठहराव 
तुम्हारी झील से आँखों में
अब ये तैरना चाहती हैं पर 
किनारे पर पहुँचना नहीं। 

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