अपराजेय समर
आदित्य तोमर ’ए डी’ये जो चल रहा है
मस्तिष्क और हृदय के मध्य
तर्क और भाव के बीच
ये है जीवन का
अपराजेय समर
हर संवेदना, हर तर्क
लगे हैं होड़ में
एक दूसरे को हराने की
भाव और तर्क के
ये आघात
लग रहे हैं बाण और
खड्ग से
बिन लहू के निष्कासन
के भी
हो रहा हूँ प्रतिपल दुर्बल
क्षीण हो रही आंतरिक
शांति और मनोबल
उठ रहा ज्वार,
बढ़ रहा रक्तचाप
अंग हो रहे शिथिल
प्रयत्न कर रहा हूँ
साहस धर रहा हूँ
सहने का परिणाम
इस अपराजेय समर का
ये जो चल रहा है
मस्तिष्क और हृदय के मध्य
तर्क और भाव के बीच।