अकेले बैठ कर

15-12-2021

अकेले बैठ कर

आदित्य तोमर ’ए डी’ (अंक: 195, दिसंबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

अकेले बैठ कर सोचने पर 
एक बात जो खटखटाती
है मस्तिष्क के द्वार को
कि कोई कितना अकेला 
हो सकता है? 
इतना कि दर्पण में देखने 
पर भी 
उसे दिखाई देता है सिर्फ़ अपने
पीछे का ख़ालीपन, 
सड़क पर चलते हुए भी
उसे सिर्फ़ नज़र आते हैं
वाहन, 
दरअस्ल वह अकेला 
नहीं होता
वह जा चुका होता है 
वहाँ से, 
जहाँ सबका साथ होना
आवश्यक होता है।

1 टिप्पणियाँ

  • 10 Dec, 2021 07:04 AM

    Very wonderful and deeply thought provoking poem. We are proud of you. You always touch the heights.

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