टेंगटा
प्रो. (डॉ.) प्रतिभा राजहंस
अनूदित लोक कथा।
बिहार (भारत का एक राज्य) के अंगजनपद की लोकप्रिय बोली (डायलेक्ट) अंगिका से अनूदित बाल कहानी।
एक किसान था। एक दिन वह हटिया से मछली ख़रीद कर ले आया। किसान की पत्नी मछली राँधने (पकाने) बैठी। जैसे ही उसने मछली वाली पोटली खोली कि एक टेंगटा (मछली) उससे निकल कर कोठी (मिट्टी से बनी अनाज रखने की कोठी) के नीचे छिप गया। किसान की पत्नी ने इधर-उधर देखा, उसे नहीं पाकर फिर मछली बनाने लगी।
राँधना हो गया और खेत पर मछली-भात ले जाने की बेला हो गयी। तभी किसान की पत्नी की आँखों से दो बूँद आँसू टपक पड़े। वह सोचने लगी—हाय, आज अगर मेरा बेटा होता तो वही कलेवा लेकर खेत पर जाता। यह सोच ही रही थी कि उधर कोठी के नीचे से टेंगटा उछल कर आगे आया और कहने लगा, “माँ! माँ! आज से तुम मेरी माँ हो और मैं तुम्हारा बेटा। दो, मैं कलेवा ले जाकर बाबूजी तक पहुँचा दूँगा।”
किसान की पत्नी चौंक गई। हमारा कोई बेटा नहीं है। यह माँ कहने वाला कहाँ से आ गया? तभी टेंगटा बोला, “माँ, मैं तुम्हारा बेटा हूँ। टेंगटा मछली।”
“कैसे कोई काम करोगे?” किसान की पत्नी ने अकबका कर पूछा।
“पहले तुम पोटली दो न। फिर देखना,” टेंगटा ने विश्वास दिलाते हुए कहा।
फिर किसान की पत्नी के हाथ से कलेवा की पोटली लेकर अपने माथे पर रखकर उछलता-कूदता हुआ वह खेत पर पहुँच गया।
किसान के पास पहुँच कर टेंगटा “हे बाबूजी! हे बाबूजी!” पुकारने लगा।
किसान चौंका कि मुझे बाबूजी-बाबूजी कौन पुकारता है? मैं तो निःसंतान हूँ। किसी और से कहा होगा; उसने सोचा। तभी टेंगटा और नज़दीक आकर कहने लगा, “बाबूजी! अचकचाइए नहीं। मैं हूँ टेंगटा। आपका बेटा। माँ ने आपके लिए कलेवा भेजा है।”
किसान ने घबराकर अपने पैर की तरफ़ ताका तो देखा कि एक टेंगटा माथे पर पोटली लेकर खड़ा है।
“तुम कौन हो?” किसान ने पूछा।
“मैं आपका बेटा—टेंगटा,” टेंगटा ने जवाब दिया। किसान ने मान लिया। फिर सोचा, ‘हमें तो कोई बाल-बच्चा तो है नहीं। कम-से-कम एक टेंगटा तो बाबूजी कहकर संबोधित करता है।’ उसने उसे स्वीकार लिया। तभी से टेंगटा किसान का बेटा बनकर रहने लगा।
एक दिन मालगुजारी नहीं मिलने के कारण राजा का आदमी किसान के बैल खोलकर ले गया। किसान दुखी होकर बैठा था कि तभी टेंगटा पहुँचा।
“बाबूजी, आज आप दुखी क्यों हैं? मुझसे कहिए,” टेंगटा ने कहा।
“तुमसे कहकर ही क्या होगा?” किसान बोला। लेकिन, टेंगटा के ज़िद करने पर किसान को बतलाना पड़ा।
“आप चिंता छोड़ दीजिए बाबूजी। आपका हल-बैल मैं लाकर आपको दूँगा,” टेंगटा ने कहा।
किसान को हँसी आ गयी।
“जो काम आदमी नहीं कर पाता है वह तुम टेंगटा-पोठिया करोगे?”
लेकिन, टेंगटा पर कोई असर नहीं पड़ा। वह चल पड़ा। रास्ते में उसे दो चूहे मिले। टेंगटा ने उनकी मदद से नरकट (सरकंडा/पतली डंडी के पौधे) काटकर एक छोटी-सी गाड़ी बनाई। दोनों चूहे बैल बनकर गाड़ी खींचने लगे।
“वाह! गाड़ी तो बहुत बढ़िया है रे टेंगटा। कहाँ चले?” रास्ते में बर्रे ने पूछा।
“नरकट काटकर गाड़ी बनाई
चूहे जोते बैल
राजा बहिन . . . ले गया।
उसी को देखने (मजा चखाने) जा रहा हूँ” टेंगटा ने कहा।
बर्रे ने कहा, “चलो मैं भी तुम्हारी सहायता करूँगा।” टेंगटा ने बर्रे को गाड़ी के एक कोने में बैठा लिया। जाते-जाते रास्ते में एक बाघ मिला।
“कहाँ चले रे टेंगटा?” बाघ ने पूछा।
“नरकट काटकर गाड़ी बनाई . . .
ले गया।”
टेंगटा ने बाघ को वही सब बतलाया, जो बर्रे को बतलाया था। बाघ भी टेंगटा के साथ हो लिया। इसी तरह, आगे जाते-जाते आग और गंगा नदी मिले। टेंगटा की बात सुनकर वे दोनों भी उसकी सहायता के लिए उसके साथ चल पड़े।
अपनी गाड़ी और संगी-साथी को लेकर टेंगटा जब राजा के महल के पास पहुँचा तब कहने लगा, “राजा हो . . . ओ . . . ओ . . . मुझे अपनी बेटी ब्याह दो तुम।”
देखते-देखते बच्चों की भीड़ लग गयी। टेंगटा ने देखा, बच्चे काम नहीं करने देंगे, तब बर्रे से कहा,
“बर्रे मामा निकलो तुम
ऐसे धिया-पूता (बच्चों को) को
देख लो तुम . . .।”
बर्रे ने निकल कर जैसे ही दो-चार बच्चों को डंक मारा कि सभी बच्चे जान लेकर भाग पड़े। बच्चों को भागते देखकर पहरा दे रहे सिपाही और अन्य लोग जुटने लगे। टेंगटा ने देखा कि यह तो भारी मुश्किल है। तभी उसने बाघ को पुकार कर कहा,
“बाघ मामा, बाघ मामा, निकलो तुम
ऐसे ख़लीफ़ा को देख लो तुम।”
इतना सुनते ही बाघ गाड़ी से निकल कर दो-चार को गप-गप करके निगल गया। इतने में राजा के पास ख़बर पहुँची कि कहीं से एक टेंगटा आया है और ऐसा-वैसा कर रहा है। राजा उधर से गरजता हुआ निकला। टेंगटा ने देखा कि ओ, राजा को अहंकार हो गया है। बस क्या था, वह आवाज़ देने लगा,
“आग मामा, दोमंजिले को देख लो तुम।”
इतना सुनना था कि आग धू-धूकर लहक पड़ी और राजा का महल उसी तरह जलने लगा, जिस तरह रावण की लंका।
राजा ने टेंगटा से माफ़ी माँगी और उसकी सारी बातें मानने के लिए तैयार हो गया। तभी टेंगटा ने आवाज़ दी–
“गंगा माँ, गंगा माँ, निकलो तुम
इस आग को देखो तुम।”
इतना कहना था कि गंगा ने प्रकट होकर आग को बुझा दिया। उसके बाद राजा ने बहुत धूमधाम से अपनी छोटी बेटी से टेंगटा का विवाह कर दिया और बहुत दान-दहेज़ भी दिया। इतना ही नहीं, पचीस जोड़ा हल-बैल भी दिया, जिस उद्देश्य से टेंगटा घर से निकला था।
उसके बाद टेंगटा उस गाँव का सबसे धनी और सुखी बनकर अपने माँ-बाप के साथ जीवन बिताने लगा।