कैसे समझाएँगे

15-08-2025

कैसे समझाएँगे

प्रो. (डॉ.) प्रतिभा राजहंस (अंक: 282, अगस्त प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

आज, 
ज़िन्दगी कितनी फ़ास्ट हो गई है 
इंसान बड़ा
दुनिया छोटी हो गई है
ज्ञान के सारे संसाधन 
इंटरनेट के माध्यम से 
मुट्ठी में पड़े मोबाइल में 
सीमित हो गए हैं 
 
ऐसे में हम 
अपनी वर्तमान 
और भविष्य की पीढ़ी को 
कैसे समझा पाएँगे
सूरदास के 
‘संदेसनि मधुबन कूप भरे’
का अर्थ 
क्या वे सभी पद
वे सभी भाव
हो जाएँगे अब व्यर्थ
 
कैसे समझाएँगे कि
चार कोस दूर बसे
मथुरा से गोकुल की दूरी
श्रीकृष्ण या राधा 
बरसों में भी 
क्यों तय नहीं कर पाए
जबकि आज हम
मिनटों में कोसों की यात्रा
पूर्ण करते हैं वायुयान से 
 
ज़िन्दगी 
कितनी फ़ास्ट हो गई है

आज हम 
गुलेरी जी की कहानी
‘उसने कहा था’ का प्रेम 
कैसे समझा पाएँगे
इस पीढ़ी को 
जो कई कई डेटिंग के बाद 
बड़े निरपेक्ष भाव से 
कह देती है 
मुझे नहीं है तुमसे प्यार 
मैं तेरे साथ 
कर नहीं सकता निर्वाह
मानो कोई बटोही 
थोड़ी देर सुस्ताने को 
आ बैठा था उसके पास
और अब पीछे की धूल झाड़ 
अपने गंतव्य की ओर
बढ़ जाना चाहता है 
 
इतना ही नहीं 
शादी के सात फेरों के कुछ घंटों बाद
आपसी सहमति से 
जब ले लेते हैं
लोग तलाक़ 
तब नल-दमयंती की 
दुष्यंत-शकुंतला की 
सावित्री-सत्यवान की
या लक्ष्मण-उर्मिला की
कथा का प्रेम 
उन्हें कैसे समझा पाएँगे
 
आज
ज़िन्दगी कितनी फ़ास्ट हो गई है। 

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