शहद
डॉ. महेश आलोकमैं शहद के बारे में सोचता हूँ
और एक मधुमक्खी
हज़ारों फूलों का चक्कर लगाकर
लौट आती है अपने घर
मैं मधुमक्खी के बारे में सोचता हूँ
और हज़ारों फूल सपने बुनने लगते हैं
शहद बनने के लिये
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- इस रास्ते से देश अपने घर लौट रहा है
- इस व्यवस्था की ऐसी की तैसी
- एक अच्छा दिन
- तालाबन्दी - 1
- तालाबन्दी - 2
- तालाबन्दी - 3
- तालाबन्दी - 4
- तुमसे मिल कर ख़ुशी मिली है
- परदा
- मेरा बेटा बड़ा हो रहा है
- मैं कविता में मनुष्य बना रहा हूँ
- रूपक
- रेल पटरी पर कान लगाकर सुनो
- लौटते हैं अपने युवा दिनों की तरफ़
- विस्मरण
- शहद
- शुक्रिया
- शैतानी दिमाग़ के विपक्ष में खड़ा हूँ
- विडियो
-
- ऑडियो
-