सरस्वती वंदना
अर्चना कोहली ‘अर्चि’
हे वागीश्वरी हंसवाहिनी
हे ज्ञान-देवी वीणावादिनी।
लेखनी मेरी चले अनवरत
होए शुद्ध बुद्धि मेरी सतत॥
सुर-छंद की आप महतारी
मराल की करें आप सवारी।
मधुर संगीत-सा हो जीवन
करूँ मैं हाथ जोड़ निवेदन॥
नहीं है मुझे वेदों का ज्ञान
गूढ़ रहस्यों से रही अजान।
शाश्वत सत्य का नहीं भान
करती हूँ मैं तेरा आह्वान॥
अंतर्मन में मेरे शब्द-पिटारा
इसी से ही मिला इक किनारा।
आपसे ही सीखे मैंने अक्षर
नहीं तो रह जाती मैं निरक्षर॥
उर में भरा बहुल अँधियारा
मानस में फैला दें उजियारा।
हे शारदा मैं मूढ़-अज्ञानी
भक्ति करके बनूँ मैं विज्ञानी॥
नाम से आपके बनते काम
स्वीकृत करें मेरा प्रणाम।
कब से खड़ी हूँ आपके द्वार
नैया लगा दे अब मेरी पार॥
मोक्ष की आप ही हैं प्रदाता
मन सदा आपके ही गुण गाता।
दें वाणी-बुद्धि शक्ति और ज्ञान
कृपा से जग में मिले मुझे मान॥
ईर्ष्या-द्वेष से कलुषित है मन
लक्ष्मी के लिए भागता है तन।
मन कर दें माता मेरा पावन
कामना बस इतनी श्वेतासन॥