रहे संस्कृति सदा संग

15-10-2023

रहे संस्कृति सदा संग

अर्चना कोहली ‘अर्चि’ (अंक: 239, अक्टूबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

गौरवशाली है निज संस्कृति, गढ़ती थी संस्कार। 
पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है, अनुपम है उपहार॥
 
निर्झरिणी बहे संस्कार की, यही हिंद पहचान। 
जिससे होते सदा परिष्कृत, सदा गुणों की खान॥
 
आत्मा यही आर्यावर्त की, होती जीवन सार। 
गाथा यह शाश्वत मूल्यों की, फैली चहुँदिश डार॥
 
गीता रामायण सब इसमें, बिखरी है वह आज। 
मर्यादा पर लगा प्रश्न है, जिस पर पहले नाज़॥
 
नैतिकता के सतत क्षरण से, होते हैं संग्राम। 
सीता-पांचाली निमित्त हैं, ज्ञात युद्ध परिणाम॥
 
लिया जन्म जिसके आँचल में, करती वह चीत्कार। 
हुआ मर्म पर अब प्रहार है, भूले शिष्टाचार॥
 
मानवता रक्षित है इसमें, दया-अहिंसा मूल। 
औंधी पड़ी अब संस्कृति है, देखे चुभते शूल॥
 
करनी मिलकर रक्षा सबको, भरने सुंदर रंग। 
करें वहन मिल भारतवासी, रहे संस्कृति संग॥

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