मैं यशोधरा, क्या आपने मुझे पहचाना
अर्चना कोहली ‘अर्चि’
मैं यशोधरा, मन की व्यथा किससे कहूँ
लोगों की घूरती निगाहों को कैसे सहूँ।
बिना कहे ही चले गए थे क्यों चुपचाप
कुछ न कुछ तो मुझसे बोल जाते आप॥
माना कि पाना था एक अद्भुत ही ज्ञान
जग के लिए करना था काम अति महान।
प्रियवर! नया नहीं था आपका-मेरा साथ
फिर भी क्यों छोड़ दिया था मेरा हाथ॥
अर्द्धांगिनी होते हुए भी न आपने जाना
कंटक सम राह की बाधा ही तो माना।
जाने के वक़्त आपके मैं थी निद्रासीन
सदैव के लिए क्यों कर दिया ग़मगीन॥
सबके दुख का था आपके मन में ध्यान
फिर क्यों मेरी पीड़ा का हुआ नहीं भान।
कब तक सभी के प्रश्नों का दूँगी मैं उत्तर
बिन तेरे ज़िंदगानी हो गई तितर-बितर॥
मेरी छोड़ो, क्या राहुल का आया ध्यान
जो है आपके-मेरे प्यार-सरगम का गान।
जाना ही तो लेकर चले जाते हमको संग
बिन कहे चले जाने से हूँ अभी तक दंग॥
इतने बरस साथ रहे क्या, मुझे पहचाना
कंटक सम बाधा हूँ, क्या इतना ही जाना।
राहुल और मैं हूँ, आपकी ही ज़िम्मेदारी
ज़िम्मेदारी क्या हमारे प्रति निभा ली सारी॥
राहुल के प्रति क्या कर्त्तव्य न कोई था नाथ
पितृ-प्रेम से वंचित करके क्यों छोड़ा साथ।
दिन तो फिर भी किसी तरह लेती मैं काट
लेकिन रात को नयनों से होती है बरसात॥
मानती हूँ आपका उद्देश्य था पाना बुद्धत्व
पर राहुल का हक़ नहीं क्या पाना ममत्व।
जानती हूँ, संन्यास को ग्रहण करना था
पर जाने से पहले दो शब्द तो कहना था॥
अंदेशा न था, जल्दी ही छूट जाएगा साथ
क्यों राहुल और मुझे बना दिया है अनाथ।
पता नहीं फिर कभी हो पाएगी मुलाक़ात
क्या कभी भी याद न आए सुंदर जज़्बात॥
नन्हे-से राहुल के प्रश्नों का नहीं है जवाब
रातभर आते रहते हैं आपके मुझे ख़्वाब।
क्यों छोड़ दिया सभी को ही मँझधार में
क्यों दिल तोड़ दिया सभी का तार-तार॥
माना जो चाहा था, वह मिल ही जाएगा
पर क्या खोया, मन कभी जान पाएगा।
मैं हूँ यशोधरा, क्यों नहीं गए मुझे कहक़र
कभी आओगे, मेरे प्रश्नों का जवाब बनकर॥