अब एकलव्य नहीं हारेगा
अर्चना कोहली ‘अर्चि’
“बेटा शैलेश। आज मैं गुरु दक्षिणा में तुमसे कुछ चाहता हूँ। आशा है, तुम अस्वीकार नहीं करोगे,” कोच रमाकांत ने शैलेश को अपने केबिन में बुलाकर कहा।
“जी कहिए सर। आपकी वजह से ही मैं आज यहाँ तक पहुंँच पाया हूँ।”
“बेटा जैसा कि तुमको पता है, आज शतरंज का फ़ाइनल राउंड है। उसमें तुम्हारा प्रतिद्वंद्वी मोहित मुख्यमंत्री का बेटा है। उससे तुम हार जाना। यही मेरी गुरुदक्षिणा होगी,” नज़रें चुराते हुए रमाकांत ने कहा।
“यह क्या कह रहे हैं सर! एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर मैं यहाँ तक पहुँचा हूँ, और आप मुझे हार जाने को कह रहे हैं।”
“बात को समझो शैलेश। पूरे कॉलेज में कोई भी शतरंज के खेल में तुम्हारा सानी नहीं है। मोहित के जीतने से मेरे साथ-साथ तुम्हारा भी फ़ायदा होगा।”
“क्षमा कीजिए, सर! मैं एकलव्य नहीं हूँ जो ख़ुद अपने हाथों से अपना अगूँठा काटकर गुरु को समर्पित कर दूंँ। समय बदल गया है। अब कोई द्रोणाचार्य बनकर एकलव्य का अंँगूठा नहीं काट पाएगा,” कहकर शैलेश कमरे से बाहर निकल पड़ा।
कोच रमाकांत का चेहरा शैलेश की बात सुनकर स्याह पड़ चुका था।