कथनी करनी में अंतर
अर्चना कोहली ‘अर्चि’
विवाह के पंद्रह दिन बाद विशाखा के नौकरी पर जाने की बात सुनकर सासू माँ का पारा चढ़ गया। ग़ुस्से से बेटे शेखर से कहा, “अब ये मेमसाहब पर्स लटकाकर नौकरी करेगी और मैं घर के सारे काम। इस उम्र में मुझसे यह न होगा। क्या यह दिन देखने के लिए मैंने इससे तुम्हारी शादी की थी! विशाखा को नौकरी छोड़नी होगी। वैसे भी क्या कमी है, घर में।”
“मम्मी ठीक ही तो कह रही है विशाखा। वैसे भी उस छोटी-सी नौकरी में क्या रखा है। बहू के होते मम्मी काम करते अच्छी लगेगी क्या!” शेखर ने भी माँ की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा।
रह-रहकर विशाखा के मन में हथौड़े की तरह शेखर और माँजी के शब्द गूँज रहे थे, ‘हमें विशाखा के नौकरी करने से कोई एतराज़ नहीं। हम इसे अपनी बेटी बनाकर रखेंगे।’
कथनी-करनी में अंतर का यक्ष प्रश्न मुँह बाए खड़ा था।