समूची धरा बिन ये अंबर अधूरा है

31-03-2015

समूची धरा बिन ये अंबर अधूरा है

डॉ. अमिता शर्मा

ये जो है लड़की
हैं उसकी जो आँखें
हैं उनमें भी सपने
जागे से सपने
भागे से सपने
सपनों में
पंख हैं
पंखों में
परवाज़ है
बंद ख़ामोशी में पुरज़ोर आवाज़ है
आवाज़ में
वादा है
बहुत सच्चा, सीधा-सादा है
कि
 
मुझे आसमान दे दो
छोटा सही इक जहान दे दो
बदले में देती हूँ वादा
कि अकेली आसमान नहीं ओढ़ूँगी
ओढ़ ही नहीं पाऊँगी
ऐसी ही बनी हूँ मैं
स्वयं को छोड़ ही नहीं पाऊँगी
 
मेरी उड़ान में
सारा जहाँ उड़ पायेगा
जब जब थकेगा जहान
मेरे आँचल में दुबक आएगा
मत डरो, मत घबराओ
कि मुझे पंख मिले तो मैं पता नहीं क्या कर जाऊँगी
तुमसे आगे कहीं दूर निकल जाऊँगी
तुम्हारे अंगना में देहरी में नहीं समाऊँगी
 
मुझे आसमान दे दो
छोटा सही इक जहान दे दो
बदले में देती हूँ वादा
कि अकेली आसमान नहीं ओढ़ूँगी
ओढ़ ही नहीं पाऊँगी
ऐसी ही बनी हूँ मैं
स्वयं को छोड़ ही नहीं पाऊँगी
 
मेरे भाई
राखी ले के बहना तेरे ही पास आयेगी
मेरे बाबा
ये बेटी आसमान से उतर के आयेगी
तो भी तेरे ही अंगना में नन्ही बन इतराएगी
मेरे सैयां
तुम्हारे भी संग संग उडूँगी
हिमालय पर तुम संग पावों जड़ूँगी
समंदर के तल तक तैरती जाऊँगी
अनछुई अनखुली सीपी ले आऊँगी
तुम संग मिल कर गूँथूँगी माला
नन्ही को तुम संग मिल के पहनाऊँगी
  
आधी आबादी हूँ पर सच्च ये पूरा है
समूची धरा बिन ये अंबर अधूरा है
 
सच कहती हूँ
मुझे आसमान दे दो
छोटा सही इक जहान दे दो
बदले में देती हूँ वादा
कि अकेली आसमान नहीं ओढ़ूँगी
ओढ़ ही नहीं पाऊँगी
ऐसी ही बनी हूँ मैं
स्वयं को छोड़ ही नहीं पाऊँगी

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