हम भी होली खेलते जो होते अपने देश
डॉ. अमिता शर्माहम भी होली खेलते जो
होते अपने देश
विधि ने ऐसा वैर निकला
भेज दिया परदेश
भेज दिया परदेश
लेकिन भेजी न सौग़ातें
अपने हिस्से में बस आईं
भूली बिसरी बातें
यहाँ तो होली शनि-रवि को,
शनि-रवि दीवाली रातें
बासी रोटी बर्फ़ निवाले,
नाचें तब जब विदा बारातें
अनुमति लेकर रंग लगाना,
ये भी कोई रंग लगाना
बाँच के रंग की जन्मपत्री,
डरे डरे से हाथ बढ़ाना
फ़ीसें दे दे नाच सीखना,
नपा तुला सा पैर उठाना
जड़ों से हम भी जुड़े जुड़े हैं,
सोच के स्वयं को धीर बँधाना
होली की सौग़ात तुम्हें शुभ,
रंग हमारा भी ले लेना
रहे बधाई दीवाली की,
दीप भी तेरा तेरी रैना
राम वहाँ बनवास से आयें,
हम भी दीपक यहाँ जलायें
भेजो कुछ हुड़दंग की पाती,
हम भी सुन सुन रंग में आयें
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