पूर्वोत्तर की प्रतिनिधि कथाकार: जमुना बीनी

15-05-2023

पूर्वोत्तर की प्रतिनिधि कथाकार: जमुना बीनी

डॉ. पुनीता जैन (अंक: 229, मई द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

पुस्तक: अयाचित और अन्य कहानियाँ
लेखिका: डॉ. जमुना बीनी
प्रकाशक: समय साक्ष्य, देहरादून
मूल्य: ₹175/-

पूर्वोत्तर के अरुणाचल प्रदेश की जमुना बीनी कवयित्री के अतिरिक्त मूलतः हिन्दी में सृजनरत एक महत्त्वपूर्ण कथाकार के रूप में हिन्दी कथा जगत् में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं। ‘अयाचित अतिथि और अन्य कहानियाँ’ (2021) उनका हिंदी में प्रकाशित प्रथम कथा-संग्रह है, जिसमें दस कहानियाँ संकलित हैं। यह कथा-संग्रह अरुणाचल प्रदेश के सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक व भौगोलिक परिवेश और तद्जनित संघर्ष और स्थितियों को केंद्र में लाता है। 

अरुणाचल प्रदेश के सांस्कृतिक परिवेश, परंपराओं, प्रथाओं को केंद्र में रखकर लिखी गयी ‘नालाइ’, ’नौमाइ’, ’पुरोईक’, ’फिफोट’ तथा ‘मिसि मूह’ आदि कहानियाँ पूर्वोत्तर के समाज से परिचय कराते हुए इन कहानियों में परंपरा और आधुनिक विचार की द्वंद्वात्मक स्थिति को सशक्त रूप से उत्कीर्ण करती हैं। वांचो समाज में राजकुमारियों के लिए विवाह पूर्व गर्भधारण करने की परंपरा वस्तुतः विवाह पूर्व लड़की की प्रजनन क्षमता का परीक्षण है। ‘नालाइ’ कहानी की प्रमुख चरित्र नालाइ असंतोष के बावजूद इस परंपरा को अपनी माँ की तरह स्वीकार कर लेती है, किन्तु उसका शिक्षित शहरी पति आनोक परंपरा के इस रूप को तर्कसंगत न मानते हुए इसे स्त्री की स्वतंत्रता, गरिमा से जोड़ते हुए समाज में सुधार की पैरवी करता है। किन्तु परिवार और परंपरा के आग्रह के सम्मुख कहानी के सभी प्रमुख पात्र नालाइ, उसका प्रिय गाम्तोंग व आनोक विवश हैं। कहानी जहाँ परंपरा और आधुनिक विचार के द्वंद्व को प्रस्तुत करती है, वहीं यह भी प्रश्न करती है कि स्त्री देह ही ‘परंपराओं की प्रयोगशाला’ क्यों बनाई जाती है! इसी तरह की परंपरा, रूढ़िवादी आग्रह, सामाजिक स्तरीकरण, जाति व्यवस्था के कारण ‘फिफोट’ कहानी की प्रमुख पात्र किशोर फिफोट राजा की चौथी पत्नी बनने की जगह तिस्सा नदी में डूबकर ख़ुदकुशी कर लेती है। कथात्मकता, द्वंद्वात्मकता के साथ यह दोनों कहानियाँ अरुणाचल प्रदेश के सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश, परंपरा के साथ स्त्री स्वतंत्रता व गरिमा के प्रश्न को मुख्य पटल पर रखती हैं। अरुणाचल प्रदेश में वांचो सामाजिक पदानुक्रम में वाङपान का स्थान सबसे नीचे है। किन्तु फिफोट को वाङपान होने पर गर्व है, न कि कोई ग्रंथि। किन्तु पिता की राजनैतिक, सामाजिक प्रतिष्ठा की आकांक्षा के लिए उसे बलिदान होने के लिए तैयार रहने को कहा जाता है। 

वस्तुतः नालाइ हो या फिफोट अरुणाचल प्रदेश में स्त्री के प्रति अन्याय, उसके दोयम दर्जे और पंरपरा के नाम पर उसके शोषण, उत्पीड़न पर यह कहानियाँ प्रश्न करती हैं। परंपरा की शृंखला में स्त्री पर सर्वाधिक प्रहार होते रहे हैं। जमुना बीनी कहानी में गोदना परंपरा को भी इसी दृष्टि से दिखाती हैं। इस सम्बन्ध में उनके विचार स्पष्ट हैं, “इस बात से मैं बिल्कुल इंकार नहीं करती कि आदिवासी समाज में अन्य समाजों के बरअक्स स्त्रियों को बहुत अधिकार और स्वतंत्रता प्राप्त है। हमारे यहाँ दहेज़ के लिए बहुएँ नहीं जलाई जाती, कन्या भ्रूण हत्या नहीं होती, प्रेम में ठुकराए जाने पर एसिड अटैक नहीं होते . . . किन्तु इसके बावजूद परंपरा की प्रयोगशाला में स्त्रियाँ ही अधिक झोंकी गयी। कहना न होगा कि समाज कोई भी हो अधिकांशतः पुरुषों को ही वरदहस्त प्राप्त है।” (‘अपनी बात’ से) स्त्री उत्पीड़न, अन्याय की इस सार्वजनीनता से मातृसत्तात्मक कहे जाने वाले समुदाय भी अलग नहीं है। 

जमुना बीनी इन कहानियों के माध्यम से अरुणाचल प्रदेश के ज़मीनी यथार्थ को सम्मुख लाते हुए वहाँ की परंपरा, इतिहास, जाति व्यवस्था, सामाजिक स्थितियों को निरंतर केन्द्र में रखती हैं। जमुना बीनी की कहानियाँ परंपरा के रूप में प्रचलित कुप्रथाओं पर प्रहार करती हैं। सामाजिक स्तरीकरण पर ‘फिफोट’ कहानी में संकेत है तो ‘पुरोईक’ कहानी खुलकर ‘तीशी’ समुदाय की वर्चस्वशाली प्रवृत्ति तथा पुरोईक समुदाय के शोषण, उत्पीड़न को प्रश्नांकित करती है तथा स्वयं इस समुदाय द्वारा इसे आत्मसात् व स्वीकार करने की प्रवृत्ति की विडंबना को रेखांकित करती है। पूरी कहानी यदि अरुणाचल प्रदेश के गाँवों की भीतरी विसंगतिपूर्ण सामाजिक स्थितियों और शोषण की परंपरा को उजागर करती है तो ‘नौमाई’ कहानी गाँवों के परस्पर संघर्ष में दुश्मन का सिर काटकर लाने वाले अर्थात् नौमाई बनने के स्वप्न, तिलिस्म से लोक्पान नाम के पात्र के मोहभंग को प्रस्तुत करते हुए उसके आत्मसंघर्ष, अन्तर्द्वन्द्व व निस्सारता के बोध को सूक्ष्मता से प्रस्तुत करती है। यह दोनों कहानियाँ शोषण व हिंसा के विरोध में सार्थक हस्तक्षेप करती हैं। जमुना बीनी स्वीकार करती हैं, “. . . कतिपय कुप्रथाएँ हैं जो दबी छिपे रूप में बदस्तूर जारी हैं। मेरी लिखी कहानी ‘पुरोईक’ से हो सकता है मेरे अपने समुदाय के कुछ लोगों की त्यौरियाँ चढ़ जाएँ, पर दलितों, वंचितों, पीड़ितों और प्रताड़ितों के साथ खड़ा होना मेरा लेखकीय दायित्व ही नहीं लेखकीय अधिकार भी है।” (‘अपनी बात’ से) अरुणाचल प्रदेश के परिवेश के साथ वहाँ के जीवंत चरित्रों व स्थानीय भाषा को भी इन कहानियों में पर्याप्त स्थान मिला है, जो हिंदी कहानियों के भौगोलिक व सांस्कृतिक परिवेश, भाषा से सर्वथा भिन्न है। वे यहाँ के समुदाय, उनकी परंपरा को अपनी दृष्टि से देखती, विश्लेषित करती हैं। परंपरा के नाम पर उत्पीड़न, शोषण और संवेदनहीनता को वे अपनी कहानियों के द्वारा नकार देती हैं। उनकी कहानी-कला कथात्मकता को हानि पहुँचाए बिना अन्याय, शोषण, असमानता को दृढ़ता से अभिव्यक्ति देती है। 

जमुना बीनी अपनी प्रारंभिक कहानियों द्वारा ही अरुणाचल प्रदेश की भाषा, संस्कृति, समाज, स्थानिकता, इतिहास, मनोविज्ञान और राजनैतिक परिदृश्य को साधने का सार्थक प्रयास करती हैं। सन् 1875 में वांचो समुदाय व ब्रिटिश संघर्ष को प्रकाश में लाती ‘अयाचित अतिथि’ जैसी कहानी हो या ‘लाइफ टैक्स’ कहानी के माध्यम से सेना और उग्रवादी संगठनों के बीच पिसते जनसामान्य की स्थिति, वे ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान संघर्षपूर्ण स्थिति दोनों को सजगता पूर्वक कथा-वस्तु में विन्यस्त करती हैं। ‘लाइफ टैक्स’ कहानी आमजन के उत्पीड़न में आर्मी और उग्रवाद दोनों की समान सहभागिता दिखाती है। भय, चिंता, हिंसा, राजनैतिक स्वार्थ, उत्पीड़न को भी ये कहानियाँ परिवेश, घटनाक्रमों व पात्रों की मनःस्थिति के द्वारा उजागर करती हैं। ये कहानियाँ किसी विशिष्ट या चमत्कृत करने वाले घटनाक्रमों, स्थितियों को नहीं गढ़तीं बल्कि अरुणाचल प्रदेश के आम जीवन से ही हमारे सम्मुख आती हैं। ‘बांस का फूल’ कहानी यदि लालिन व उसकी गर्भवती पत्नी के ग़रीबी के संघर्ष के बीच परस्पर सहयोग, सद्भावना, कर्त्तव्यबोध के मानवीय गुणों को दर्शाती है, तो ‘वर्दी में भिखारी’ जैसी कहानी के द्वारा जमुना बीनी व्यवस्था की कुरूपता को दर्शाते हुए राज्यों के बीच सीमा विवाद के ज़मीनी स्वरूप से परिचय कराती हैं। स्त्री-उत्पीड़न के छोटे-छोटे दृश्य हों या तंत्र के भीतर उगाही और वसूली का सार्वभौमिक चरित्र—उनकी सजग दृष्टि इन छोटी-छोटी घटनाओं के पीछे कार्यरत मनुष्य की मंशा व प्रवृत्ति को निरंतर उजागर करती है। ‘नम रसाप’ जैसी कहानी अरुणाचल प्रदेश और देश के अन्य भागों की सांस्कृतिक विविधता व अपरिचय की स्थिति को एक संक्षिप्त घटनाक्रम के द्वारा अत्यंत सहजता से दर्शा देती है। 

अपनी कहानी-कला, विषय-चयन व अनुभव-संसार द्वारा जमुना विश्वस्त करती हैं तथा हिन्दी कथा-संसार को एक नये लोक से परिचित कराती हैं। यही नहीं थांग (धारदार हथियार), मोरूंग-पा (युवा गृह), नाया (दादी), नाबा (पिता), आग्रा (टोकरी), ब्रो (कब्र), पोका (मदिरा), आजेन (दोस्त), ईगु (पुजारी), आप्या (भैया), चेदे-चे (कुष्ठरोग), नेपिंग (कपड़ा जिससे शिशु को पीठ पर बाँधा जाता है), आने (माँ), लांपा (दूत), बोपा (टोपी), मन्ताय (नहीं) आदि हिंदी कथा-जगत के लिए सर्वथा नए शब्द हैं, जिससे जमुना बीनी की कहानियाँ परिचित कराती हैं। पूर्वोत्तर की संस्कृति और सामाजिक स्थिति, संघर्ष, समस्याओं से प्रदेश के अन्य क्षेत्र लगभग अनभिज्ञ हैं। यहाँ के एक प्रदेश से कई रचनाकारों की हिंदी में सक्रिय उपस्थिति हिंदी कथा-लेखन के अनुभव-संसार को तो समृद्ध करती ही है साथ ही हिन्दी लोक को अधिक उदार भी बनाती है। वस्तुतः पूर्वोत्तर के सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक परिवेश से परिचय और वहाँ की भाषिक विविधता की उपस्थिति हिंदी लेखन को अधिक समृद्ध और व्यापक बनाती है। जमुना बीनी की सार्थक उपस्थिति इसे एक क़दम और आगे ले जाने में अपना महती योगदान देती है। 

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