हिंदी कथा-संसार में अरुणाचल प्रदेश की युवा उपस्थिति: रेमोन लोंग्कु

15-06-2023

हिंदी कथा-संसार में अरुणाचल प्रदेश की युवा उपस्थिति: रेमोन लोंग्कु

डॉ. पुनीता जैन (अंक: 231, जून द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)


समीक्षित पुस्तक: कोंग्कोंग-फांग्फांग
लेखक: रेमोन लोंग्कु
प्रकाशक: प्यारा केरकेट्टा फ़ॉउंडेशन, रांची
मूल्य: ₹129/-

अरुणाचल प्रदेश पूर्वोत्तर भारत का एक ऐसा राज्य है जिसकी सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनैतिक स्थितियाँ, भाषा, जीवन-शैली ही नहीं वहाँ की चुनौतियाँ और समस्याएँ भी सर्वथा भिन्न हैं। जमुना बीनी की कहानियाँ जहाँ वांचो आदिवासी समुदाय के जीवन, परिवेश, संस्कृति और परंपरा से परिचित कराती हैं, वहीं जोराम यालाम की कहानियाँ ञीशी आदिवासी समुदाय के स्त्री-जीवन को कथा के केंद्र में रखती हैं। अरुणाचल प्रदेश के ही युवा कथाकार रेमोन लोंग्कु अपने कथा-संग्रह ‘कोंग्कोंग-फांग्फांग’ (2022) में तांग्सा आदिवासी समुदाय की परंपरा, संस्कृति, परिवेश और वर्तमान संघर्ष व चुनौतियों को केंद्र में रखते हुए अपनी कहानी में विशेष रूप से ‘हेड हंटर्स’ (गर्दन काटने वाले लोग) को कथा-विषय बनाते हैं। अपनी कहानियों के विषय में स्वयं रेमोन लोंग्कु का कथन उल्लेखनीय है, “मेरी दृष्टि में हेड हंटर्स कोई परंपरा या संस्कृति का हिस्सा नहीं है। बस एक प्रतिशोध है। प्राचीन समय में भी हेड हंटर्स का युद्ध कभी भी संस्कृति या मनोरंजन के लिए नहीं था। यह अपने-अपने समुदाय और समाज के लिए रक्षा का प्रतीक था, जिससे जुड़ी अनेक कथाएँ हमारे गाँव में आज भी प्रचलित हैं। इस युद्ध में चांगलांग के तांग्सा और टुटसा, तिराप के नोक्टे लोंगदिंग के वांचो आदिवासी लोग प्रभावित हुए। इन आदिवासी समुदायों का संघर्ष हज़ारों सालों से रहा है। लेकिन जब वे यह हेड हंटर्स कार्य छोड़कर शिक्षा की ओर बढ़ रहे थे तब फिर से उन्हें एक नए संघर्ष का सामना करना पड़ा। यह संघर्ष वर्तमान में भी इन सब को प्रभावित किए हुए है। यह समस्या है उग्रवाद और अफस्पा की। इससे पूर्वोत्तर के सभी समुदाय ग्रस्त हैं। (पुस्तक के प्रारंभिक वक्तव्य—‘केछु अजुंग’ से) वस्तुतः युवा कथाकार रेमोन अपने इस वक्तव्य द्वारा अरुणाचल के आदिवासी समुदायों के प्राचीन और वर्तमान संघर्ष को एक साथ अपनी कहानियों की विषय-वस्तु बनाने के पीछे के कारण को रेखांकित कर रहे हैं। 

दरअसल गर्दन काटने वाले लोगों द्वारा की जाने वाली क्रूरता व हिंसा हो या उग्रवाद के विविध रूप और संकट, जमुना बीनी भी अपनी कहानियों में दोनों को विशेष रूप से चिह्नित करती हैं। उनकी ‘नौमाई’ नामक कहानी दुश्मन का सिर काट कर लाने वाले अर्थात् नौमाई को ही कथा का प्रमुख विषय बनाती है। अरुणाचल प्रदेश के यह नवागत हस्ताक्षर अपने अतीत और वर्तमान से भलीभाँति परिचित हैं और उसके अनुकूल और प्रतिकूल पक्ष से भी। ये कथाकार अपनी ज़मीनी यथार्थ से गहराई से जुड़े हैं तथा उसे लेकर उनके स्पष्ट विचार और चिंताएँ हैं। ‘कोंग्कोंग फांग्फांग’ रेमोन लोंग्कु का प्रथम कथा-संग्रह है। वह सीधे सरल शिल्प में अपनी कथावस्तु को विन्यस्त करते हैं। कथात्मकता और सहजता इन कहानियों को रवानगी और रोचकता प्रदान करती है। हिंदी कथा-जगत के लिए इन कहानियों में अछूते विषय और अछूते चरित्र हैं। इन चरित्रों के नाम, क्रियाकलाप, परिवेश, भाषा से हिंदी कथा-संसार का यह नया परिचय है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह प्रारंभिक प्रयास कथा शिल्प और विषय वस्तु की दृष्टि से न केवल परिपक्व लगते हैं बल्कि वे स्थितियों, चरित्रों, घटनाक्रमों और वहाँ के भूगोल व सांस्कृतिक परिवेश को लेकर उत्सुकता जगाते हैं। यही नहीं पंजाबी, बांग्ला या मराठी हिंदी अर्थात् प्रांतीय भाषा की प्रकृति में ढली हिंदी के नव कलेवर की तरह इन कहानियों में हम पूर्वोत्तर के लहजे में ढली अरुणाचली हिंदी के स्वरूप से अवगत होते हैं। जिसमें लिंग संबंधी विविधताएँ प्रायः मिलेंगी। किन्तु यह प्रांतीयता में ढली वाचिक हिंदी की तरह ही स्वाभाविक है और हिंदी की कहन-शैली का विस्तार है। हिंदी के कथा-परिवेश में अपने भूगोल, संस्कृति, परिवेश व संघर्ष के साथ-साथ अरुणाचली हिंदी भी शामिल होने को तत्पर है अपनी तमाम सीमाओं व व्याकरणिक दोषों के साथ। 

आदिवासी समुदाय प्रकृति से स्वाभाविक रूप से जुड़ा हुआ है। अरुणाचल प्रदेश के आदिवासी समुदाय की जीवन-शैली में भी प्रकृति से जुड़ाव शेष आदिवासी समुदाय की तरह ही है। यह समुदाय प्रकृति से उतना ही लेने में विश्वास करता है जितने की उसे ज़रूरत है। अतिरिक्त की चाह को वे अतिरेक मानकर चेतावनी की तरह लेते हैं। क्योंकि प्रकृति के कोमल और कठोर दोनों रूपों से वे स्वाभाविक रूप से परिचित हैं। जल रक्षक, वन रक्षक जैसी शब्दावली प्रकृति की शक्ति और उसके प्रति विनम्र भाव रखने की संस्कृति से परिचित कराती है। शिकार के अतिरेक पर अनुभवी वृद्ध चेतावनी देते हैं किन्तु ‘उस शिकार का शिकार’ कहानी में लुन्ग्वांग और रेहाप द्वारा इस चेतावनी की अवहेलना का नतीजा यह निकलता है कि जंगली सूअर शिकार करने आए रेहाप को ही शिकार बना लेता है। ‘दादी आ रही है मां’ कहानी यदि जंगली जानवरों से मिलने वाली चुनौतियों को दर्शाती है तो दूसरी ओर ‘तिरिंग पर्वत के उस पार’ कहानी भी प्रकृति के कोप को सम्मुख लाती है, जिसमें पूरे गाँव के लोग एक अनजान बीमारी से हताहत होने लगते हैं। वस्तुतः प्रकृति के सहयोगी रूप के अतिरिक्त उसके अनबूझ स्वरूप के साथ भी आदिवासी समुदाय का सामना होता रहता है। रेमोन लोंग्कु युवा कथाकार हैं, उनके अनुभव-संसार में पूर्वोत्तर के परिवेश, जीवन-जगत की स्वाभाविक उपस्थिति है। इन अनुभवों, स्थितियों को सहज रूप से कथा में विन्यस्त करने में वे सक्षम हैं। कथा की बुनावट में कहीं कृत्रिमता या अवरोध नहीं है। उनकी कहन-शैली में सहजता, गतिमयता और रोचकता की सहज उपस्थिति है। 

सामूहिकता आदिवासी जीवन-दर्शन, जीवनचर्या का स्वाभाविक अंग है। इसी कारण किसी गाँव में जब बड़ा शिकार किया जाता है तो उसमें पूरे गाँव का हिस्सा होता है। उनकी मान्यता है कि इस नियम के विरुद्ध जाने पर प्रकृति के कोप का शिकार होने का भय है। ‘शापित झील’ कहानी दर्शाती है कि ग़रीब विधवा दादी और विकलांग पोती की गाँव द्वारा अवहेलना और उन्हें शिकार का हिस्सा न देना व उत्सव में शामिल न करना गाँव को भारी पड़ता है। उस दिन भूख से व्याकुल दादी पोती के अन्यत्र चले जाने और लौटकर आने पर पूरा गाँव विलुप्त होकर एक बड़ी झील में समा चुका होता है। शिकार के अतिरेक पर वनरक्षक के कुपित होने की तरह ही यहाँ जल रक्षक को कुपित दर्शाया गया है। प्रकृति के साथ ही यहाँ मानव समाज में भी मूल्यपरक व्यवहार, समानता, न्याय के जीवन-दर्शन व जीवन मूल्यों की पैरवी की गई है। वस्तुतः आदिवासी समाज में अपनी संस्कृति, जीवन-दर्शन, परंपरा, मूल्यों के प्रति समर्पण भाव रहता है। ‘होहो’ कहानी भी होहो नामक एक चरित्र और सामूहिक ज़िम्मेदारियों के भाव को सामने लाती है। यह कहानी परिवार से जुड़ाव, स्मृति और स्थानीय संस्कृति के दृश्य को उकेरती है। वहीं परंपरा के नाम पर ‘गर्दन काटने वाले लोग’ कहानी हिंसा, बदले की भावना के कारण उजड़ते परिवारों का चित्र प्रस्तुत करती है। जड़ परंपरा और रूढ़ियाँ ऐसी कुरीतियों को ज़िन्दा रखकर समुदायों को ही हानि पहुँचाती हैं। ‘कोग्कोंग फांग्फांग’ कहानी भी युवा प्रेम के बीच ऐसी ही कुप्रथा, परंपरा के कारण कोंग्कोंग और फांग्फांग नामक चरित्रों को आत्महत्या के लिए विवश होता दिखाती है। रेमोन लोंग्कु की कहानियों में कहानीपन का प्रवाह और आख्यानपरकता उसे मनोरंजक बनाती हैं। ‘शापित झील’, “कोंग्कोंग फांग्फांग’ इस दृष्टि से उल्लेखनीय कहानियाँ हैं। वस्तुतः उनकी अधिकांश कहानियाँ इस दृष्टि से पठन हेतु आमंत्रित करती हैं। 

सैन्य संघर्ष और उग्रवाद का पूर्वोत्तर की कहानियों में निरंतर उल्लेख वहाँ के इस भौगोलिक व सामाजिक संघर्ष की ओर ध्यान खींचता है। जमुना बीनी की कहानियों में इस तरह के स्थानीय संघर्ष, सामाजिक दुष्प्रभाव का उल्लेख कई कहानियों में हैं। ‘फायरिंग’ कहानी जहाँ फ़ौजियों द्वारा अबोध ग्रामीण पर गोली चलाने और आम आदमी पर अत्याचार को दर्शाती है, तो वहीं ‘डर’, ‘फांग्थोई’ कहानी उसका दूसरा पक्ष भी दिखाती है। जिसमें उग्रवादियों द्वारा ज़बरदस्ती ग्रामीण युवाओं को अपने संगठन में शामिल होने को विवश किया जाता है। यह संघर्षपूर्ण स्थिति सामान्य जन को ही सर्वाधिक प्रभावित करती है। पूर्वोत्तर भारत की अपनी भौगोलिक समस्याएँ हैं, वहाँ के आदिवासी समुदायों की स्वतंत्र पहचान व संस्कृति है। अरुणाचल प्रदेश के कथाकारों की कहानियों की विषय-वस्तु हिंदी कथा-परिवेश में इन सर्वथा अछूती स्थितियों को अकार देती हैं। 

रेमोन लोंग्कु अपने पहले ही प्रयास में अरुणाचल प्रदेश की संस्कृति, परिवेश, रूढ़ियों के साथ-साथ उसके स्थानीय संघर्ष, सैन्य उपस्थिति, उग्रवाद के सामाजिक प्रभाव को भी कथा-विषय में सम्मिलित करते हैं। भारत में अनेक आदिवासी समुदाय हैं जिनकी अपनी सांस्कृतिक, सामाजिक पहचान, जीवन-शैली और पंरपराएँ हैं। इसके बावजूद प्रकृति से प्रगाढ़ता और सामूहिकता का जीवन-दर्शन उनमें प्रायः समान रूप से निहित है। रेमोन लोंग्कु की मात्र दस कहानियाँ ही विषय-वैविध्य के साथ अपने परिवेश, विरासत से जुड़ाव तथा आदिवासियों के विचार को भी रेखांकित करने में सक्षम दिखती हैं। 

पुनीता जैन
प्राध्यापक-हिन्दी
शास. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, 
भेल, भोपाल
मो. 94250-10223

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें