बहुत ज़रूरी है . . . 

15-12-2021

बहुत ज़रूरी है . . . 

डॉ. पुनीता जैन (अंक: 195, दिसंबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

कितनी सुंदर हैं जीवन की सामान्यताएँ
जता देती हैं हदबंदियाँ
बंद दरवाज़े और खिड़कियाँ
क़ैदख़ानों सा अकेलापन
अंत का भय और संदेह
जूझता मन /थकती देह
चीज़ों की निरर्थकताएँ
 
बहुत ज़रूरी है जीवन की आपाधापियाँ
रोज़मर्रा की व्यस्तताएँ
कब क्या होगा की अनिश्चितताएँ
अनजाना कल और कठिन सरल यात्राएँ
खुले आसमान में निश्चिंत चिड़ियाएँ
बादलों से झाँकती किरणें और
मुक्त हवा जो मंद मंद मुस्कुराए
 
बहुत ज़रूरी है
बची रहे सृष्टि
बचा रहे मनुष्य और
सतत झिरती उसकी मनुष्यताएँ . . . 

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