प्रेरणाप्रद बाल-मुक्तक

15-09-2022

प्रेरणाप्रद बाल-मुक्तक

शकुन्तला बहादुर (अंक: 213, सितम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

चिड़िया 
चूँ चूँ चूँ चूँ चिड़िया बोली। 
मुन्नी ने तब आँखें खोलीं। 
“हुआ सबेरा, उठ जा भोली”, 
मुस्काकर तब माँ यों बोली॥
 
सूरज 
रात गयी और सूरज आया, 
जग में अब उजियारा छाया। 
सब जीवों को आ के जगाया, 
चमकीला दिन सबको भाया॥
 
चाँद 
चन्दा मामा रात को आते, 
भोर सबेरे घर को जाते। 
तारों के संग खेलने आते, 
बच्चों को ये ख़ूब लुभाते॥
 
हवा 
हवा वही सुख देने वाली, 
झूम झूम पत्ते दें ताली। 
पौधों को सींचे है माली, 
करे वही इनकी रखवाली॥
 
झरना 
झर झर झर झर झरना बहता, 
धरा पे जल-मोती बिखराता। 
उमंग और उल्लास है देता, 
जग को शीतलता दे जाता॥
 
फूल 
फूल सदा मुस्काते रहते, 
जग को सुरभित करते रहते। 
काँटों में भी हँसते हैं ये, 
जीना हमें सिखाते हैं ये॥
 
पर्वत 
पर्वत नित ऊँचे रहते हैं, 
ये संदेश हमें देते हैं। 
ऊँचे उठते रहो सदा ही, 
अटल रहो निज निर्णय पर ही॥
 
नदी 
नदिया से नित बहना सीखें, 
सुख-दु:ख दोनों सहना सीखें। 
पार करें पत्थर भी पथ पर, 
हमें विजय पाना विघ्नों पर॥
 
घड़ी 
टिकटिक टिकटिक घड़ी चल रही, 
हम सब को है संदेश दे रही। 
समय की घड़ियाँ बीत रही, 
कर्म करो तुम, आलस्य नहीं॥
 
समय 
समय निरन्तर चलता रहता, 
पल भर को भी नहीं ठहरता। 
तुम भी चलते रहो सदा ही, 
थक कर रुकना नहीं कभी भी॥

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