बन्धन
शकुन्तला बहादुर
साँस की ज़ंजीर से ही,
प्राण बन्धन में बँधे हैं।
और प्राणों से सदा ही,
मोह के रिश्ते जुड़े हैं।
पलक मुँदते साँस की ज़ंजीर टूटे,
मोह के ये तार भी सब,
झनझना इक साथ छूटें॥
साँस की ज़ंजीर से ही,
प्राण बन्धन में बँधे हैं।
और प्राणों से सदा ही,
मोह के रिश्ते जुड़े हैं।
पलक मुँदते साँस की ज़ंजीर टूटे,
मोह के ये तार भी सब,
झनझना इक साथ छूटें॥