मैं अकेला

01-05-2025

मैं अकेला

खान मनजीत भावड़िया 'मजीद’ (अंक: 276, मई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

अकेला हूँ
पर अकेला नहीं
मेरे साथ है
तारों भरी रात
चाँद की चाँदनी
मुँह पर आई झुर्रियाँ
माथे पर पड़ी शिकन
एक सुनसान रात में
जब बिस्तर पर होता हूँ। 
 
घड़ी की सुईयों की आवाज़
भयभीत कर देती है
मुझे झाड़ि‌यों की झुण्ड की छाँव
आवारा पशुओं की आवारगी
ये भी कभी-कभी डरा देती है। 
रात में कुत्तो की आवाज़
उल्लू की आवाज़
और भी कई बार बिस्तर से उठा देती है। 
 
बहती नदी की धारा
तालाब का सुनसान
मुझे अन्दर से कचोटते हैं। 
बार-बार मरने की कहती है। 
सड़क पर गुज़रने वाले वाहनों की आवाज़
लोहपथ गामनी की रातों भर आवाज़
पटरी भी सुनसान
मरने को कहती है। 
 
मैं अकेला हूँ मेरे साथ है। 
उन सब की यादें
जो मज़दूर और मजबूर हैं
उनको चौराहों, गलियों
में घसीट-घसीट कर मार दिया गया। 
 
वो ख़ास जो सियासत करते हैं
वो आम जो उनकी सेवा करते हैं
उन सबका यह काम यह आम काम है। 
 
मैं अकेला हूँ
पर याद है
मुझे भीड़ में मरने वाले व मारने वाले
लोग सीमा पर मरने वाले जवान
दिल्ली में मरने वाले किसान
मर गई है दोनों की शान
मैं आज अकेला हूँ
तुम करो जो करो। 
 
मुझे अकेला तुमने किया
मेरे साथ है चाँदनी रात का साया
कुछ बीती यादें। 
कुछ सुनहरे पल
जो बीत गए। 

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