खेतों की आग और प्रेम 

15-05-2025

खेतों की आग और प्रेम 

खान मनजीत भावड़िया 'मजीद’ (अंक: 277, मई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

हाल ही में मैंने
एक भूख महसूस करना 
शुरू कर दी है
खेतों में आग लग गई 
पूरा गाँव खड़ा हो गया 
 लालच के साथ लेने के लिए, 
एक खेत की आग की तरह 
जो भस्म करती है 
पूरी की पूरी फ़सल
हर जगह आग
और प्रत्येक हत्या के साथ 
और अधिक विकराल होती जाती है। 
उज्जवल आकर्षण, 
जो कुछ भी मेरे रास्ते में आता है। 
खुली बुग्गी में गंजा बच्चा, 
दादा, माँ पिता एक साथ 
आपको लगता है कि मैं केवल देखता हूँ, 
और आप भी, 
पेड़ के पीछे दुबले-पतले प्रेमी 
जो अनाज खड़ा है
उसको निहार रहा है 
और आप
आपके हाथ में काग़ज़ 
क्या लिखूँ 
और आँखों में सूरज जैसी रोशनी वाला बूढ़ा आदमी . . . 
मेरी तरफ़ आँखें तकाए 
आग की लपटों की तरह लिपटती हैं
मेरी नसें जलती हैं; 
और, जब मैं आपसे बात कर लेता हूँ, 
बैलगाड़ी में, खेतों में, नहर के किनारे 
खेतों के कच्चे रास्ते 
पेड़ के पास बैठ कर 
और उद्यान में बेंच पर बैठ कर की बातें 
मैं राख के अन्दर छोटे-छोटे ढेर थूकता हूँ
बलग़म के
और कुछ नहीं
लेकिन मेरे अंदर दृश्य, गंध 
और ध्वनियाँ पनपेंगी 
और चलती रहेंगी 
और चलती रहेंगी
मेरे अंदर वह बच्चा सोएगा 
जो बैलगाड़ी में बैठा था 
और सोएगा 
और फिर जागेगा
और अपनी बिना दाँतों वाली
मुस्कान मुस्कुराएगा
मेरे मुझमें, 
सड़क के लैंप टिमटिमाएँगे, 
कैमरे में लड़कियाँ नाचेंगी
शादी के ढोल गूँजेंगे
हिजड़े रंगीन स्कर्ट घुमाएँगे 
और प्यार के उदास गीत गाएँगे, 
घायल कराहेंगे, 
और मुझमें आशा भरी आँखों से 
मरती हुई माँ अपने बच्चे की तलाश में 
इधर-उधर देखेगी, 
जो अब बड़ा हो गया है
और दूसरे पड़ोसी खेतों में 
दूसरी खेत की बाँहों में चली गई है
आग लगते लगते 
जिस को बुझाना मुश्किल है 
लगने के अनेक कारण हैं
बिजली की तार की सर्किट से। 

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